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वक़्त बदलता है

वक़्त के बदलते रूप 
वक़्त कभी एक सामान नहीं रहता 
वक़्त का पहिया निरंतर चलता ही रहता है
वक़्त बदलना प्रकृति का नियम है 
वक़्त बदलना आवयश्कता का रूप है
वक़्त एहसास कराता है 

धूप छांव दिन-रात साक्षात उदहारण है, 
बदलते वक़्त के ....
युग बदलते हैं ,सभ्यता संस्कृति सोच 
एवम् कार्य करने के ढंग बदलते है 
वक़्त एवम् काल नए आविष्कारों के भी जननी है
आवयश्क है वक़्त का बदलना भी 
बदलाव एवम् परिवर्तन हमें एहसास कराता है
की आज सुख है तो कल कष्ट भी हो सकता है 
कहीं रास्ते समतल है तो कहीं पथरीले भी हो सकते हैं 
कहीं ऊंचे पहाड़ तो कहीं गहरी खाई 
भी हो सकती है ,सुख-दुःख हार-जीत 
मनुष्य को जीवन सहनशीलता एवम्
 धैर्य  के गुण सिखाता है
बचपन,जवानी,बुढ़ापा,मानव जीवन के रथ का 
पहिया जो नए रूप दिखाता है 
स्वस्थ जीवन मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है
किसी काल में कोई महामारी 
मनुष्य प्राणों पर करती है प्रहार  
संयम,धैर्य,एवम् सावधानी ही होता है जिसका उपचार
बदलते संसार का बदलता व्यवहार

यूं तो कभी नहीं रुकता संसार 

झुकता वही है जिसमे बल होता है ।

  पहले तो इस  भ्रम  को बदल  दीजिये  ,की झुकने वाला  कमजोर  होता है   हाँ झुकने का मतलब  यह बिल्कुल नहीं , की  आप अपने को निर्थक ,नक्कारा समझे  .  अतामविश्वाश से भरा व्यक्ति  कभी कमजोर हो ही नहीं  सकता  । 
                                    झुकता कौन है ? 

सदभावनाओ  और सद्विचारों  से भरे हृदय में ही झुकने  की सामर्थ्य  होती  है । 
क्योंकि फलो  से लदा हरा  -भरा  वृक्ष ही  झुकता है और    सूखा  हुआ  वृक्ष हमेशा  सीधा तना और अकड़ा रहता  है ।  
 तकरार  न समझी  की निशानी है ।                                                

बार -बार समझाने  पर जो नहीं समझाता उसे  उसके हाल  पर छोड़ देना  चहिए । 
सीधे  सरल लोगो को दूनियाँ मुर्ख समझती है परन्तु सरलता का
 महत्व वही जानता है जो सरल है  सरलता से मानसिक शांति मिलती है 
 लड़ने वाला  सवयं को बहादुर  समझता है सोचता है की लड़ाई न करने  वाला  डरपोक है वह  यह नहीं जानता की लड़ाई न करने वाला लड़ाई से होने  वाले विनाश व् प्रकोप  से बचाता है । 
क्रोध से बड़ा  कोई शत्रु नहीं  ,क्रोध मुर्खता  से प्रारम्भ  होता है । 
 आवश्यकता  है आज के युग  में कमल  की तरह कीचड़ में रहते हुए स्वयं 

को कीचड़ से बचाने की । 
असम्भव शब्द  ना करने वालों की डायरी  में होता है । 
तन की सुन्दरता  जितनी आवश्यक है उतनी ही मन की ,
 सुन्दरता भी ,
 मन की सुन्दरता मन बुधि के दोषों को दूर करने से बढती है 

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...