💐ॐ 💐💐ॐ जय सरस्वती भगवती देवी नमः 💐💐

   💐💐ॐ   💐💐ॐ जय सरस्वती भगवती देवी नमः 💐💐
                नतमस्तक ,नमन, अभिवादन
                जय सरस्वती देवी, आप ज्ञान रूप में ,
                मेरी बुद्धि में जो सदा विराजमान रहकर
                मेरा मार्गदर्शन करती रहती हो ,उसके लिये
                मैं आपका वन्दन करूँ ,प्रतिपल,प्रतिदिन,
                असँख्य बार वन्दन करूँ।
             "  हे सरस्वती माता" आप जो हम मनुष्यों की
               बुद्धिमें विराजमान होकर हमारा मार्गदर्शन
               करती हो ,हम मनुष्यों को भले और बुरे का व
           विवेक कराती हो,हमें सँसार में शुभ कर्मो के लिये
                प्रेरित करती हो ,उसके लिये मैं धन्यवाद करूँ
                मैं, तो निश दिन" हे,सरस्वती देवी" ,तुम्हारा ही
                गुणगान करूँ ,यशगान करूँ । हे बुद्धि विवेक
                की देवी हम सबका मार्गदर्शन करते रहो ।
                ऐसा वर दो वीणा वादिनी ,मेरी वीणा से में भी
                ज्ञान का अमृत भर दो 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

💐 सफर ये कैसा सफ़र💐

       
 💐  "सफ़र ये कैसा सफ़र"💐
   " दुनियाँ एक सराय हम मुसाफिर
      आँख क्यों न भर आये ,पहले बता
       परमात्मा ?तुमने जज़्बात क्यों बनाये?

 "चाह थी जो पाया नहीं ।
      जो पाया वो चाहा नहीं
      फिर जो पाया उसी को चाह लिया"।।
   
 प्रकृति ने दिये अनमोल ख़जाने
पर हम बन के सयाने ,भरते रहे झूठे
         खजाने ।।

दुनियाँ का सफ़र ,सुहाना सफ़र
 उस पर रिश्तों का बन्धन,
रिश्तों संग दिलो में जज़्बात ।।

       दिलों में प्रेम की जोत
 हर कोई किसी न किसी की जीने की वज़ह
 फिर कह दो दुनियाँ एक सराय
 इतनी बड़ी सराय ,लम्बा सफ़र
        इन्सान मुसाफिर ।।।।।

 
दूँनियाँ की सराय में मैं मुसाफिर
फिर सफ़र के हर लम्हें में क्यों
ना आनन्द उठाया जाये ।।


 सफ़र का आंनद लेना सीखो मेरे अपनों
सफ़र का हर लम्हा हमें कुछ न कुछ सीखा जाता है ।

जो पत्थर पैरों में कंकड़ बन चुभते हैं ,वही पत्थर
हमारे घरों की दीवारें बनाते हैं ।


कोई सूखे पत्ते देख उन्हें व्यर्थ समझता है
कोई उन्ही सूखे पत्तों से अपना चूल्हा जला लेता है।


पापी पेट का सवाल है ,कोई अपने घर के कूड़े को
बहार फैंकता है ।, कोई भूखा उसी कूड़े को अपने
           भोजन वज़ह बना लेता है ।।




 
    💐   " गणतंत्रता का सम्मान करो "💐

  "आज हम स्वतन्त्र हैं,हमारा अपना गणतंत्र है।
 👍  गणतन्त्र हमारा हमारा महान है।"
  सविंधान की सभी धाराओं का भी महत्व है👍
  वैदिक संस्कृति का भी का सम्मान है।👍
 हाँ आज हम स्वतन्त्र हैं, पर स्वतन्त्रता का ना अपमान हो ।
       सम्भलो मेरे देशवासियों     क्योंकि  ?
आज हमारी स्वतन्त्रता असंख्य माताओं की गोद की😢
       क़ुर्बानियाँ हैं ।   जब परतंत्रता की बेड़ियों के जुल्म का
दर्द बेअंत था,   जिन्दा थे कि, साँसे चल रही थी वरना जीना
कोई झन्नुम से ना कम था ,हर वक्त सिर पर मँडराता मौत ए😢
कफ़न था और क्या-क्या कहें हँसने पर भी दर्द ऐ सितम था।
मेरे देशवासियों, मेरे बन्धुओं अपनी स्वतन्त्रता को ना
अपमानित करना ,ये स्वतन्त्रता अनमोल है।
 बलिदानों का सिलसिला बेअंत है।।😥

 छब्बीस जनवरी  भारत का गणतंत्रता दिवस।
 गणतंत्र का सहज सम्मान हो , नियमों का पालन हो।
 स्वसम्पत्ति की सुरक्षा ,त्यों स्वदेश सम्पत्ति की सुरक्षा
 सुव्यवस्था ,और स्वच्छता॥ " मेरा भारत महान"  है की
 कहने वालों !  "भारत माता का"  भी श्रृंगार करो ।
 निज भवनों के बाहर न कचरे का भण्डार करो ।🚮
 भ्रष्टाचार का अब अन्त करो ।🚰
 भारत को अपना कहने वालों ,भारत माता का सम्मान करो
अपने गणराज्य पर अभिमान करो ।
सविंधान के नियमों का सम्मान करो।

 नये युग की नयी परिभाषा 🎆🎋🎉
 नयी पीढ़ी की नयी अभिलाषा ।
 सुनहरे भविष्य की दस्तक है ये तो
 अब ना बढ़ते कदमों को रोको,
 कर्मठता और निष्ठता के बीज है बोयें
तरक़्क़ी की अब फ़सल ऊगेगी ।
उन्नत्ति के शिखर पर चढ़कर नये युग का
आगाज़ करेंगे ।भारत माता का फिर स्वर्णिम
अक्षरोँ में दुनियाँ में नाम करेंगे🎉🎊
भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगा
विश्वकौटम्बकम का सपना अब सच हो जाएगा ।।
🎎🎉🎊🎆🎇🎇🎈🎈

" अपने लिये तो सभी जीते हैं,
 पर जीवन वह सफल है ,जो औरो 
के जीने के लिए भी जिया जाये ।"

"जब तक साँस है ,तब तक आस
जिन्दगी का हर वो लम्हा ख़ास है,
जिस लाहे में कुछ ऐसे कर्म कर दिये
जायें जिसमे हम किसी के जीने की
वज़ह बन जाये ,हमारे इस दूनियाँ से चले
जाने के बाद भी हमें याद किया जाता रहे ।"

"ज़िन्दगी भर मैं ख़्वाहिशों का टोकरा भरता रहा ।
एक ख़्वाहिश पूरी हुयी, दूसरी तैयार
ख्वाहिशें तो पूरी ना हुई ,पर साँसों की गिनती
पूरी हो गयी  और मैं दुनियाँ से चलता बना ।"



👌 हिमपात👌

     👌  हिमपात 👌

   सर्दियों की सौगात,
   सर्द हवाओं वाली दिन
    और रात ।
   दोपहर में मीठी धूप
     की तपिश ।
 मानों तन को सहलाता माँ
   का ममता भरा हाथ ।

पल-पल में करवट बदलता मौसम ।
सर्दियों में ,पहाड़ों का श्रृंगार करता
      हिमपात ।

श्वेत ,निर्मल , मखमली ,जलकणों का
शून्य तापमान ,पर बन हिमकण ,
आसमान से गिरना ,और प्रकृति का करना
श्रृंगार , पत्ता-पत्ता डाली- डाली हर और
शवेत बर्फ की चादर बिछना ।

पहाड़ों में प्रकृति का अनुपम श्रृंगार
मानों स्वर्ग से कोई शवेत परी का अद्भुत अलंकार
वाह गज़ब है, धरती पर ,प्रकृति की सौगात देता
अज़ब -गज़ब चित्रकार ।



आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...