**आँगन की कली**

आँगन की कली *

vlcsnap-2015-07-23-11h14m17s66जब मैं घर में बेटी बनकर जन्मी
सबके चेहरों पर हँसी थी ,
हँसी में भी ,पूरी ख़ुशी नहीं थी,
लक्षमी बनकर आयी है ,शब्दों से सम्मान मिला ।
माता – पिता के दिल का टुकड़ा ,
चिड़िया सी चहकती , तितली सी थिरकती
घर आँगन की शोभा बढ़ाती ।
ऊँची-ऊँची उड़ाने भरती
आसमाँ से ऊँचे हौंसले ,
सबको अपने रंग में रंगने की प्रेरणा लिए
माँ की लाड़ली बेटी ,भाई की प्यारी बहना ,पिता की राजकुमारी बन जाती ।
एक आँगन में पलती,   और किसी दूसरे आँगन की पालना करती ।
मेरे जीवन का बड़ा उद्देश्य ,एक नहीं दो-दो घरों की में कहलाती ।
कुछ तो देखा होगा मुझमे ,जो मुझे मिली ये बड़ी जिम्मेदारी।
सहनशीलता का अद्भुत गुण मुझे मिला है ,
अपने मायके में होकर परायी ,  मैं ससुराल को अपना घर बनाती ।
एक नहीं दो -दो घरों की मैं कहलाती ।
ममता ,स्नेह ,प्रेम ,समर्पण  सहनशीलता  आदि गुणों से मैं पालित पोषित                                                                                                     मैं एक बेटी ,मैं एक नारी ….
मेरी  परवरिश  लेती है , जिम्मेवारी , तभी तो धरती  पर सुसज्जित है ,
ज्ञान, साहस त्याग समर्पण प्रेम से फुलवारी    ,
ध्रुव , एकलव्या  गौतम ,कौटिल्य ,चाणक्य वीर शिवजी
वीरांगना “लक्षमी बाई ,” ममता त्याग की देवी  ”पन्ना धाई”,आदि जैसे हीरों के शौर्य से गर्वान्वित है भारत माँ की फुलवारी

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