💐👌👍 🎂 🎂बचपन का मीठा सा नया साल 🎂🎂💐💐👍👌

            💐👌👍 🎂 🎂बचपन का मीठा सा नया साल 🎂🎂💐💐👍👌

 सच है ,बचपन के बारे में जितना कहा जाये वास्तव में कम है ।     यूँ तो मैं बचपन को बहुत पीछे छोड़ आयी हूँ  ,परन्तु अपने अन्दर  के  बचपने को कभी मरने नहीं दिया मैंने  ।क्योंकि बचपन से मासूम ,सादगी से भर जीवन दोबारा नहीं मिलता ।

इसी लिये कहते हैं न ,जिन्दगी को जिन्दा दिली से गुजारो क्यों रो -रो कर गुज़ारें ज़िन्दगी 😃 जितनी साँसों की माला मिली है जीना तो है ही फिर क्यों  ना हर लम्हे को हँस के जिंदादिली से जिये ।

नये साल का मौका है । आज मुझे नये साल से जुड़े कुछ लम्हें याद आ रहे हैं । नये साल का मौका नयी उमंग नयी तरंग  कुछ नया करने का मौका  हम क्यों पीछे रहते  पार्टी करना तो स्वभाविक ही था । अब तो नये साल हो या कोई भी भी अच्छा मौका हम सब लोग परिवार वाले ,दोस्त आदि पार्टी अरेंज करते हैं या फिर किसी होटल में जा कर पार्टी करते हैं । लेकिन आज से दस पंद्रह साल पहले ऐसा नहीं होता था ,जो भी मौज मस्ती करते थे घर पर  ,या फिर किसी मनोरंजन स्थल पर खाना बना कर ले जाते थे  और प्राकृतिक वातावरण में खेलते खाते ,मौज-मस्ती करते थे । 🌲🌳🌴🌹

कई वर्षों तक हम भी ऐसे ही नये साल के मौके पर खुशियाँ मनाते रहे । याद है मुझे वो दिन हम पाँच पड़ोसियों ने नया साल कुछ इस तरह मनाया पाँचों पड़ोसियों ने फैसला किया की हर एक अपने -अपने घर से कुछ न कुछ बना कर लायेगा ।खुश थे कि अलग -अलग व्यंजन खाने को मिलेंगे जब घर आकर हमने अपना प्रोग्राम घर वालों को बताया  ,पहले तो मेरी माता जी खुश हुई बोली तुम क्या बना कर ले जाओगे मैंने बोला कुछ भी पंजाबी खाना सब कह रहे थे ,कि मेरे घर से राजमा चावल आयेंगे ,और माँ आप सब भी चलोगे और सबके घर से सब लोग आयेंगे घर पर कोई नहीं रहेगा नया साल है , पहले हम मसूरी से थोड़ी दूर पहाड़ी पर स्थित है ,फिर मसूरी की हसीन वादियों का आनन्द लेंगे और खाना खायेंगे । मेरी माँ बोली अच्छा सुरकण्डा देवी हाँ मैं कब से जाने की सोच रही हूँ नये साल का पहला दिन माँ के दर्शन होंगे चलो अच्छा है ,और ये बता और कौन -कौन जा रहा है ,मैंने उन्हें सबके नाम बता दिये।माँ बोली अरे वो सलमा की माँ तो मुसलमान हैं ,वो थोड़ी मन्दिर जायेंगी ,मैंने माँ को बताया सबसे पहले उन्ही के घर पर प्रोग्राम् बनाया था उन्हें कोई एतराज नहीं है ,माँ बोली अच्छा वो भी खाना बना कर लायेगी  मैं तो नहीं खाऊँगी उसके घर का खाना ,मैं सकपकाई बोली माँ जब सलमा आँटी की बेटी घर आती है वो तो यहाँ सब खाती है और मैं उनके घर पर खाती हूँ ,माँ बोली तुम जो भी करो मैं नहीं खाऊँगी वो मॉस मछली खाने वाले नहीं मैं तो अपने घर का खा लूँगी हाँ सविता और बबीता के घर का कोई बात नहीं ,मैं माँ की बात सुनकर थोड़ी परेशान हुई फिर सोचा माता रानी सब ठीक करेगी ।🍇🍔🍟🍝

नये साल का पहला दिन हम लोग माता के दर्शनोँ के लिये अपने -अपने घरों से निकल दिये ,हम सब एक मिनी बस बैठ गये बस चल दी सबने जय माता का जय करा लगाया । हम सब माता के दर्शन के लिये चढाई चढ़ रहे थे ,सलमा आँटी बड़े जोर से बोली जय माता की मैं तो थक गयी सब सलमा आँटी को कहने लगे आँटी थोड़ी ही दूर है, चलो फिर खाना भी खाना है॥

लगभग एक घंटे में हम मन्दिर तक पहुंचे सबने माता के दर्शन किये पूजा पाठ भी किया और अपनी-अपनी मन्नते भी माँगी ।
 दर्शन करके हम लोग आस-पास के प्राकृतिक नजारों का आन्नद लेने लगे तभी मेरी माँ मेरे पास आकर बोली ये सलमा तो बड़े अच्छे से पूजा कर रही थी ऐसा लग ही नहीं रहा था की ,ये अलग धर्म की है । इतने में पीछे से आवाज आयी चलो भई खाई बैठने की करो बड़े जोर से भूख लगी है ,सबने अपना-खाना निकाल कर बीच में रख दिया सब थके हुए थे भूख भी लग रही थी बस जिसको जो अच्छा लग रहा था खाने लगा इतने में मेरे बगल में बैठी मेरी माँ धीरे से मेरे कान में बोली मुझे मत देना सलमा के घर का खाना मैंने भी ठीक है कहकर माँ को चुप करा दिया ,सब ही लोग एक दुसरे के घर के खाने का मजा ले रहे थे ,कोई कह रहा था राजमा तो लजावाब बनी है।
 कोई अरे ये भिण्डी खाओ ये दम आलू ये मटर पनीर आज तो मजा ही आ गया इतने में खाना खाते -खाते मेरी माँ बोली वो भिन्डी देना बड़ी अच्छी लग रही है और ये मटर पनीर वाह जिसने भी बनाये हैं उसके हाथों में तो जादू है।मैं मन ही मन मुस्करा रही थी और डर भी रही थी की अगर माँ को पता चला की मटर पनीर और भिण्डी सलमा आँटी ने बनाये थी तो वो बस पता नहीं मुझे कितना बुरा भला कहेंगी ।
*👌👍
 उस वर्ष का पहला दिन हम सबने बड़ा अच्छा बिताया ,सब अपने -अपने घर पहुँच रहे थे ,एक दुसरे के खाने की तारीफ़ भी कर रहे थे। सलमा आन्टी का घर आ गया था सबने उन्हें नये साल की बधाई दी ,इतने में मेरी माँ सलमा आन्टी के पास जाकर बोलीं तुम खाना तो बहुत अच्छा बनाती हो ,आज तो मजा आ गया मटर पनीर और भिण्डी खा के फिर कब खिलाओगी अपने हाथ का बना खाना सलमा आन्टी जानती थी की मेरी माँ सलमा आँटी के यह का खाना खाना पसंद नहीं करती क्योंकि वो मॉस मछली खाते है। सलमा आण्टी थोडा सकपकाई फिर बोली जब चाहो ,मेरी माँ बोली बस शाकाहारी होना चाहिये तुम तो मेरी छोटी बहन हो बहन के हाथ का खाना भला क्यों नहीं खाऊँगी ,और सलमा तुम भी आना हमारे घर खाने पर । सलमा आँटी, बबीता, सविता सब अपने -अपने घर चल दिये सबने एक दूसरे को नये साल की बधाई देकर विदा किया ।
घर के अन्दर पहुँचते ही मेरी माँ बोली आज तूने मुझे सलमा के घर का खाना खिला दिया मैंने बोला माँ सबके खाने में पता ही नहीं चला की कौन सा सलमा आन्टी के घर का खाना है , मेरी माँ बोली बेटा मुझे बुद्धू समझती है क्या ये तूने ठीक ,मैंने माँ की बात बीच में काटते हुये बोला माँ आप भी ना पता नहीं कौन से जमाने में जी रही हो ,मेरी माँ बोली  तो तुम्हे भी पता नहींकि तुम कौन से ज़माने में रह रही हो ।
हैं तो हम सब ईंसान ही ना क्या हुआ कोई किस जाती का है। वैसे तेरी सलमा आन्टी खाना स्वादिष्ट बनाती है ।👌👌👍👍🎂🎂🎂🌲👍👍👍👍☺☺☺☺☺😊😊
 सच है ,बचपन के बारे में जितना कहा जाये वास्तव में कम है ।     यूँ तो मैं बचपन को बहुत पीछे छोड़ आयी हूँ  ,परन्तु अपने अन्दर  के  बचपने को कभी मरने नहीं दिया मैंने  ।क्योंकि बचपन से मासूम ,सादगी से भर जीवन दोबारा नहीं मिलता ।

इसी लिये कहते हैं न ,जिन्दगी को जिन्दा दिली से गुजारो क्यों रो -रो कर गुज़ारें ज़िन्दगी 😃 जितनी साँसों की माला मिली है जीना तो है ही फिर क्यों  ना हर लम्हे को हँस के जिंदादिली से जिये ।

नये साल का मौका है । आज मुझे नये साल से जुड़े कुछ लम्हें याद आ रहे हैं । नये साल का मौका नयी उमंग नयी तरंग  कुछ नया करने का मौका  हम क्यों पीछे रहते  पार्टी करना तो स्वभाविक ही था । अब तो नये साल हो या कोई भी भी अच्छा मौका हम सब लोग परिवार वाले ,दोस्त आदि पार्टी अरेंज करते हैं या फिर किसी होटल में जा कर पार्टी करते हैं । लेकिन आज से दस पंद्रह साल पहले ऐसा नहीं होता था ,जो भी मौज मस्ती करते थे घर पर  ,या फिर किसी मनोरंजन स्थल पर खाना बना कर ले जाते थे  और प्राकृतिक वातावरण में खेलते खाते ,मौज-मस्ती करते थे । 🌲🌳🌴🌹

कई वर्षों तक हम भी ऐसे ही नये साल के मौके पर खुशियाँ मनाते रहे । याद है मुझे वो दिन हम पाँच पड़ोसियों ने नया साल कुछ इस तरह मनाया पाँचों पड़ोसियों ने फैसला किया की हर एक अपने -अपने घर से कुछ न कुछ बना कर लायेगा ।खुश थे कि अलग -अलग व्यंजन खाने को मिलेंगे जब घर आकर हमने अपना प्रोग्राम घर वालों को बताया  ,पहले तो मेरी माता जी खुश हुई बोली तुम क्या बना कर ले जाओगे मैंने बोला कुछ भी पंजाबी खाना सब कह रहे थे ,कि मेरे घर से राजमा चावल आयेंगे ,और माँ आप सब भी चलोगे और सबके घर से सब लोग आयेंगे घर पर कोई नहीं रहेगा नया साल है , पहले हम मसूरी से थोड़ी दूर पहाड़ी पर स्थित है ,फिर मसूरी की हसीन वादियों का आनन्द लेंगे और खाना खायेंगे । मेरी माँ बोली अच्छा सुरकण्डा देवी हाँ मैं कब से जाने की सोच रही हूँ नये साल का पहला दिन माँ के दर्शन होंगे चलो अच्छा है ,और ये बता और कौन -कौन जा रहा है ,मैंने उन्हें सबके नाम बता दिये।माँ बोली अरे वो सलमा की माँ तो मुसलमान हैं ,वो थोड़ी मन्दिर जायेंगी ,मैंने माँ को बताया सबसे पहले उन्ही के घर पर प्रोग्राम् बनाया था उन्हें कोई एतराज नहीं है ,माँ बोली अच्छा वो भी खाना बना कर लायेगी  मैं तो नहीं खाऊँगी उसके घर का खाना ,मैं सकपकाई बोली माँ जब सलमा आँटी की बेटी घर आती है वो तो यहाँ सब खाती है और मैं उनके घर पर खाती हूँ ,माँ बोली तुम जो भी करो मैं नहीं खाऊँगी वो मॉस मछली खाने वाले नहीं मैं तो अपने घर का खा लूँगी हाँ सविता और बबीता के घर का कोई बात नहीं ,मैं माँ की बात सुनकर थोड़ी परेशान हुई फिर सोचा माता रानी सब ठीक करेगी ।🍇🍔🍟🍝

नये साल का पहला दिन हम लोग माता के दर्शनोँ के लिये अपने -अपने घरों से निकल दिये ,हम सब एक मिनी बस बैठ गये बस चल दी सबने जय माता का जय करा लगाया । हम सब माता के दर्शन के लिये चढाई चढ़ रहे थे ,सलमा आँटी बड़े जोर से बोली जय माता की मैं तो थक गयी सब सलमा आँटी को कहने लगे आँटी थोड़ी ही दूर है, चलो फिर खाना भी खाना है॥

लगभग एक घंटे में हम मन्दिर तक पहुंचे सबने माता के दर्शन किये पूजा पाठ भी किया और अपनी-अपनी मन्नते भी माँगी ।
 दर्शन करके हम लोग आस-पास के प्राकृतिक नजारों का आन्नद लेने लगे तभी मेरी माँ मेरे पास आकर बोली ये सलमा तो बड़े अच्छे से पूजा कर रही थी ऐसा लग ही नहीं रहा था की ,ये अलग धर्म की है । इतने में पीछे से आवाज आयी चलो भई खाई बैठने की करो बड़े जोर से भूख लगी है ,सबने अपना-खाना निकाल कर बीच में रख दिया सब थके हुए थे भूख भी लग रही थी बस जिसको जो अच्छा लग रहा था खाने लगा इतने में मेरे बगल में बैठी मेरी माँ धीरे से मेरे कान में बोली मुझे मत देना सलमा के घर का खाना मैंने भी ठीक है कहकर माँ को चुप करा दिया ,सब ही लोग एक दुसरे के घर के खाने का मजा ले रहे थे ,कोई कह रहा था राजमा तो लजावाब बनी है।
 कोई अरे ये भिण्डी खाओ ये दम आलू ये मटर पनीर आज तो मजा ही आ गया इतने में खाना खाते -खाते मेरी माँ बोली वो भिन्डी देना बड़ी अच्छी लग रही है और ये मटर पनीर वाह जिसने भी बनाये हैं उसके हाथों में तो जादू है।मैं मन ही मन मुस्करा रही थी और डर भी रही थी की अगर माँ को पता चला की मटर पनीर और भिण्डी सलमा आँटी ने बनाये थी तो वो बस पता नहीं मुझे कितना बुरा भला कहेंगी ।
*👌👍
 उस वर्ष का पहला दिन हम सबने बड़ा अच्छा बिताया ,सब अपने -अपने घर पहुँच रहे थे ,एक दुसरे के खाने की तारीफ़ भी कर रहे थे। सलमा आन्टी का घर आ गया था सबने उन्हें नये साल की बधाई दी ,इतने में मेरी माँ सलमा आन्टी के पास जाकर बोलीं तुम खाना तो बहुत अच्छा बनाती हो ,आज तो मजा आ गया मटर पनीर और भिण्डी खा के फिर कब खिलाओगी अपने हाथ का बना खाना सलमा आन्टी जानती थी की मेरी माँ सलमा आँटी के यह का खाना खाना पसंद नहीं करती क्योंकि वो मॉस मछली खाते है। सलमा आण्टी थोडा सकपकाई फिर बोली जब चाहो ,मेरी माँ बोली बस शाकाहारी होना चाहिये तुम तो मेरी छोटी बहन हो बहन के हाथ का खाना भला क्यों नहीं खाऊँगी ,और सलमा तुम भी आना हमारे घर खाने पर । सलमा आँटी, बबीता, सविता सब अपने -अपने घर चल दिये सबने एक दूसरे को नये साल की बधाई देकर विदा किया ।
घर के अन्दर पहुँचते ही मेरी माँ बोली आज तूने मुझे सलमा के घर का खाना खिला दिया मैंने बोला माँ सबके खाने में पता ही नहीं चला की कौन सा सलमा आन्टी के घर का खाना है , मेरी माँ बोली बेटा मुझे बुद्धू समझती है क्या ये तूने ठीक ,मैंने माँ की बात बीच में काटते हुये बोला माँ आप भी ना पता नहीं कौन से जमाने में जी रही हो ,मेरी माँ बोली  तो तुम्हे भी पता नहींकि तुम कौन से ज़माने में रह रही हो ।
हैं तो हम सब ईंसान ही ना क्या हुआ कोई किस जाती का है। वैसे तेरी सलमा आन्टी खाना स्वादिष्ट बनाती है ।👌👌👍👍🎂🎂🎂🌲👍👍👍👍☺☺☺☺☺😊😊

"☺💐 खुशहाल नववर्ष 💐☺"

प्रतिभावान ,प्रगतिशील,समृद्ध,
नव वर्ष में नवयुग की सौगात
नयी कोपलें, नयी पीढ़ी की नयी
फसल है ,समृद्ध करने को नववर्ष
         खुशहाल ।
पवित्र ,शुभ परस्पर प्रेम रुपी
      शुभ विचार  की खाद
" नव वर्ष फिर से दे रहा है ,दस्तक
  अब कर लो नव नूतन पंचांग दीवारों
         पर सुसज्जित।"
बारह मास , तीन सौ पैंसठ दिन का
एक वर्ष का काल । अब पूर्ण होने
   को है , दो हज़ार सोलह के
      वर्ष का  कार्यकाल।
अब दो हज़ार सत्तरह का सफ़र शुरू है
   बीते वर्ष का सुहाना सफ़र                                
   कुछ खोया, और कुछ पाया
  दुनियाँ के मेले में ,सपनों का मेला

 नववर्ष में ,नव नूतन सपनोँ का रेला
 हरी -भरी धरती पर सुख समृद्धि से
       परी पूर्ण वसुन्धरा।

स्वर्णिम सोच है, स्वर्णिम सपने
फिर से सोने की चिड़िया बन चेहकेगा
  भारतवर्ष का इतिहास सुनहरा।

आध्यात्मिक ता का अब दीप प्रज्ज्वलित
आत्माओं में अमर प्रेम की ज्योत जली है।
     ना कोई द्वेष है ,ना कोई वैर है
     इन्सानियत सबका धर्म होगा ।
     सादगी और ईमानदारी का जीवन होगा।

सुहाने सफ़र की सुहानी कहानी
मेहनती हाथों में है ,तकदीर देश की
सबको मिलेगी अपने  हक़ की रोटी
 नहीं सोयेगा अब कोई भूखा
शिक्षित होगा हर नौजवान ,बच्चा-बच्चा

संस्कृति ,शिक्षा,और  कर्मठता का जब रंग चढ़ेगा
 स्वर्ग धरा पर आ जायेगा
भारतवर्ष फिर सोने की चिड़िया कहलाएगा।





                   
                     





  

काश की वो वक्त वहीं थम जाता । हम बड़े न होते बच्चे ही रह जाते । पर क्या करें की प्रकर्ति का नियम है ,बचपन , जवानी बुढ़ापा , दुनियां यूं ही चलती रहती है । जिसने जन्म लिया है ,उसकी मृत्यु भी शास्वत सत्य है उससे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता ये एक कड़वा सच है । हम बात कर रहे थे ,बचपन की , बचपन क्यों अच्छा लगता है । बचपन में हमें किसी से कोई वैर नहीं होता । बचपन का भोलापन ,सादगी ,हर रंग में रंग जाने की अदा भी क्या खूब होती है । मन में कोई द्वेष नहीं दो पल को लड़े रोये, फिर मस्त । कोई तेरा मेरा नहीं निष्पाप निर्द्वेष निष्कलंक मीठा प्यारा भोला बचपन । ना जाने हम क्यों बड़े हो गये , मन में कितने द्वेष पल गये बच्चे थे तो सच्चे थे , माना की अक्ल से कच्चे थे ,फिर भी बहुत ही अच्छे थे , भोलेपन से जीते थे फरेब न किसी से करते थे तितलियों संग बातें करते थे , चाँद सितारोँ में ऊँची उड़ाने भरते थे प्रेम की मीठी भाषा से सबको मोहित करते थे । बच्चे थे तो अच्छे थे । 

        काश की वो वक्त वहीं थम जाता । हम बड़े न होते बच्चे ही रह जाते ।
 पर क्या करें की प्रकर्ति का नियम है ,बचपन , जवानी बुढ़ापा , दुनियां यूं ही चलती रहती है ।
जिसने जन्म लिया है ,उसकी मृत्यु भी शास्वत सत्य है उससे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता ये एक कड़वा सच है ।

हम बात कर रहे थे ,बचपन की , बचपन क्यों अच्छा लगता है ।
बचपन में हमें किसी से कोई वैर नहीं होता ।
बचपन का भोलापन ,सादगी ,हर रंग में रंग जाने की अदा भी क्या खूब होती है ।
मन में कोई द्वेष नहीं दो पल को लड़े रोये,  फिर मस्त  । कोई तेरा मेरा नहीं  निष्पाप निर्द्वेष निष्कलंक  मीठा प्यारा भोला बचपन ।

 
  ना जाने हम क्यों बड़े हो गये , मन में कितने द्वेष पल गये
  बच्चे थे तो सच्चे थे , माना की अक्ल से कच्चे थे ,फिर भी
  बहुत ही अच्छे थे , भोलेपन से जीते थे फरेब न किसी से करते थे
   तितलियों संग बातें करते थे , चाँद सितारोँ में ऊँची उड़ाने भरते थे
  प्रेम की मीठी भाषा से सबको मोहित करते थे ।
  बच्चे थे तो अच्छे थे ।



💐👍" स्वर्णिम युग ने दी दस्तक "👍💐

       
  💐👍" स्वर्णिम युग ने दी दस्तक "👍💐

    यह बात तो निःसंदेह सत्य है ,कि हर पक्ष के दो पहलू होते हैं ।
     ऐसा भी नहीं की मेरी राजनीति में कोई विशेष रुचि है ।न ही मैं किसी पार्टी विशेष् की पक्षधर हूँ ।
    हाँ मैं देश हित की पक्षधर हूँ ,जहाँ बात देश हित की हो उससे कैसे मुँह मोड़ा जा सकता है ।
   
   हाँ मैं बात कर रही हूँ ,देश के प्रधानमंत्री आदरणीय मोदी जी ...
   पुराने नोटों की बंदी और नये नोटों का चलाना ।
 
   मोदी जी के इस फैसले के बाद मानो देश में कोई भूकंप आ गया था , सारा देश विचलित माता बहने भी  घरों में अपनी जमा पूँजी
 समेटने लगी ।व्यपारी वर्ग, आम जनता भी पुराने नियमों के लागू न होने से और नए नियमो के आने से काफी परेशान हुए ।
 

 परन्तु यह बात भी पूर्णतया सत्य है ,कि भारत देश की सवा सौ करोड़  जनता भले ही अपने मुँह से कुछ न कहे पर वो मन ही मन बहुत खुश है । खुश है क्योंकि पुरानी भरष्टाचार की बेडियाँ अब खुलेंगी ।
पुरानी  नीतियॉं पुराना काला धन अब सफेद होजाएगा।

 ,बहुत हल्का पन महसूस होगा ,मानसिक तनाव भीं खत्म होगा जो जितनी मेहनत करेगा उतना धन कमाएगा । अगर नोट बंदी का यह कदम अनुचित होता तो देश की जनता इतनी परेशनियाँ सेह कर चुप न रहती।

चोर बाजारी खत्म होगी ,हर कोई अपने हक़ की खाएगा ।

जब हमार सारा धन बैंको में जमा होगा तो  हाथ में कैश ही नहीं होगा तो ,नकली नोटों का कोई सवाल ही नहीं होगा ।

जो भी है, मोदी जी का कदम देश के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया है ।

देश बदलेगा युग बदलेगा ।।      " जय हिन्द भारत माता की जय "

👍 बचपन के खट्टे मीठे अनुभव👍😉😂😂

        😄 👍  बचपन के खट्टे मीठे अनुभव👍😉😂😂

   कल की ही बात है ,मैं और मेरी मित्र कई दिनों बाद मिले । हम दोनोँ बचपन से एक स्कूल में पड़े ,स्कूल के बाद
      एक ही कालेज से हमने डिग्री ली ।
     क्योंकि बचपन से हम संग रहे तो ,एक दुसरे की पसंद नापसन्द  भी हमें अच्छे से पता थी ।
     हम दोनों ने संग -संग बहुत ख़ेल कूद खेले खूब मस्तियाँ करी,पर ऐसा कुछ नहीं किया जिससे किसी को कोई भारी नुक्सान हो ।
      अनजाने में बालपन में हुई गलती को तो भगवान भी माफ़ करता है
   
       पर एक बार की बात है, खेलते खेलते हमारी बॉल पड़ोसन आन्टी के शीशे पर जा लगी और शीशा टूट गया ,बस क्या था हम
     दोनों सहेलियाँ अपने-अपने घरों में यूँ जा बैठी जैसे हम तो कई घंटों से अपनी जगह से हिली ही ना हों ।          

     भाग्यवश उस समय वो पड़ोसन आँटी घर पर नहीं थी घर पर ताला लगा वो सब्जी लेने गयी हुईं थी ।
🐒🐒उन दिनों कुछ बन्दरों ने हमारे  घर के आस -पास डेरा डाला हुआ था मौका मिलते ही बंदर टूटे हुए शीशे से आंटी के घर जा घुसे मैं और मेरी सहेली सारा नजारा छुप-चुप कर देख रहे थे मन ही मन खुश थे की आँटी सोचेगी की बन्दरों 🐒ने शीशा तोड़ा, फिर ये भी सोच रहे थे की बन्दर तो आँटी के घर का सारा सामान उलट -पुलट कर देंगे ।

एक बार तो सोचा जाकर आँटी को ख़बर दें की आँटी आपके घर में बन्दर घुस गये है, फिर ये सोच कर चुप हो गये की आंटी बोलेगी तुमको कैसे पता कि मेरे घर में बंदर घुस गये हैं ,फिर मैं और मेरी सहेली एक साथ बैठ कर स्कूल का काम करने लगे

लगभग एक घंटे बाद आँटी बाज़ार से घूम कर सब्जी लेकर घर लौटी ,घर का दरवाज़ा खोलते ही जोर -जोर से चिल्लाने लगी चोर -चोर मेरे घर में चोर घुस गये देखो सारा सामान उलट-पुलट कर दिया है ,न जाने क्या-क्या उठा कर ले गये होंगे ।इतने में सारे पडोसी इक्कठे हो गये सब लोग आँटी को हिम्मत देने लगे उनके घर का सारा बिखरा सामान ठीक से लगाने लगे ,इतने में एक आँटी बोली ये कैसे चोर थे सारा सामान उलट -पुलट कर दिया आटे का ड्रम भी गिरा दिया दाल सब्जी पानी सब कुछ बिखेर दिया चोरों को और कुछ नहीं मिला ।
तभी एक आंटी की नजर खिड़की के टूटे हुए शीशे पर गयी अरे देखो चोर शीशा तोड़ कर अन्दर घुसा होगा ।तभी एक कहने लगी अपनी अलमारी चेक करो सारा कीमती सामान जेवर तो पड़े हैं ना

आँटी ने अपना कीमती सामान जेवर रुपया सब चेक किया सब ज्यों का त्यों था आँटी ने चैन की साँस ली। सब पडोसी कहने लगे की शायद कोई भूखे चोर होंगे सिर्फ खाने के सामान को ही हाथ लगाया।
 मैं और मेरी सहेली हाथ पकडे चुप -चाप सब देख रहे थे मन ही मन खुश हो रहे थे, की हमारी गलती पकड़ी नहीं गयी
और दबे पाँव वहाँ से खिसके और फिर बाद में हम जो दहाड़ दहाड़कर हँसे वो हँसी आज भी हमें रोमांचित कर जाती है ,क्या करते अगर आँटी को सच बोलते की वो चोर नहीं बन्दर थे ,तो हम फँसते बस चुप ही रह गये .......
 कुछ ऐसे ही खट्टे मीठे अनुभवों के साथ फिर मिलेंगे .......... 😂😂😁😂😁

💐 शब्द तो वहीँ हैं 💐

 
☺शब्द तो वहीं हैं☺

हाँ शब्द तो वही है
बातें भी वही है
पर मेरे लिखने का अंदाज
मेरा अपना है।

दिल की बातों को ,
शब्दों की माला में पिरो
एक सुव्यवस्थित आकार दे
श्रृंगार करते रहता हूँ ।
कभी करुणा ,कभी प्रेम ,कभी हास्य,
कभी वीर रस के रंग में रंगते रहता हूँ ।

कभी कहानी लिख कर अपनी बात कहता हूँ
कभी कोई कविता लिख समाज को
समर्पित करते रहता हूँ ।

लिखता तो वही हूँ ,जो हम सब को ज्ञात होता है
शब्द भी वही होते हैं ,जज़्बात भी वही होते है।

पर अपनी बात को अपने ढँग से
सवाँर कर समाज को समर्पित कर देता हूँ।

मेरी कविता ,कहानी ,लेख ,कहीं कोई
अपनी छाप छोड़ जाये ,किसी के दिल
की गहराइयों में उतर अपना करिश्मा
दिखा जाये ,किसी के जीने का अंदाज़ बदल जाये
किसी की सोच में सकारात्मक परिवर्तन आ जाये
तो मेरे परमात्मा के द्वारा मुझे सौंपा गया
मेरा कर्म सफल हो जाये ।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
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                                 💐💐💐

💐अभिनय💐

     ☺"अभिनय"☺

मगर जब से हमने हर मौसम में लुत्फ़ लेना सीख लिया ,

जिंदगी के सब शिकवे बेकार हो गए ।

ज़िन्दगी तो बस एक नाटक है ,

दुनियाँ के रंगमंच में हमें अपने किरदार को बखूबी निभाना है ।

फिर क्यों रो _रो कर दुखी होकर गुजारें जिंदगी

जीवन के हर किरदार का अपना एक अलग अंदाज़ है

क्यों अपना-अपना किदार बखूबी निभा लें हम

इस नाटक की एक विशेष बात है ,

क़ि हमने जो परमात्मा से मस्तिक्ष की निधि पायी है ,

बस उस निधि का उपयोग ,करने की जो छूट है ,

उससे हमें खुद के रास्ते बनाने होते हैं

हमारी समझ हमारी राहें निशिचित करती हैं ,

परिश्रम ,निष्ठा, और निस्वार्थ कर्मों का मिश्रण जब होता है,

तब मानव अपने किरदार में सुंदर रंग भरता है,

और तरक्की की सीढियाँ चढ़ता है ,

भाग्य को कोसने वाले अभागे होते हैं ,

वह अपने किदार में शुभ कर्मों का पवित्र रंग तो भरते नहीं

फिर भाग्य को कोसते हैं ,

और परमात्मा को दोषी ठहराते हैं।



💐👌 खूबसूरत 👌💐

 
           💐खूबसूरती💐
👌💐💐👌                    
 विचार हों खूबसूरत तो सब खूबसूरत नज़र आता है । आँखों का कोई दोष नहीं ,दिल में हो खूबसूरती तो पत्थर भी तरश कर हीरा बन जाता है ।वो पत्थर ही थे जिन्हें तराश कर कारीगरों की खूबसूरत सोच ने ताज़महल जैसी बेमिसाल इमारात बना डाला ।
हर और खूबसूरत देखने की आदत मैंने डाली है ।
मेरी सोच भी बड़ी डरपोक है ,चाहती तो सब अच्छा है ,पर न जाने क्यों भटक जाती है, शायद डर जाती है सब कुछ अच्छा चल रहा होता हैं ,पर न जाने क्यों वो कुछ नकारात्मक सोचने लगती है ,शायद मेरी सोच मेरी बुद्धि चाँद में ग्रहण होने से डर जाती है गुलाब में भी काँटों के चुभ जाने से डरती है ।जिस दुनियाँ ने सीता माँ को नहीं छोड़ा उस दुनियां की नकारात्मक सोच से डरती है ,पर अब मैंने भी ठानी है ।
नकारात्मक सोच के बीजों को अपनी बुद्धि से उखाड़ फैंकने की योजना बना ली है ,जो होना है वो तो हो होगा ही ,परिवर्तन प्रकृति का नियम है ।

☺👌बचपन से अच्छा कुछ भी नहीं☺💐👌

सच में बचपन से अच्छा कुछ भी नहीं.......
बचपन, मदमस्त बचपन। ना चिन्ता ,न फ़िक्र,ना किसी का भय , अपनी ही दुनियाँ में मस्त ।
ईर्ष्या -द्वेष से परे जिन्दगी जहाँ जीने के लिए जिये जाती है,  उसे उसे बचपन कहते हैं ।बचपन में मानव के कँधों पर जिम्मेदारी का कोई बोझ नहीं होता ,कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती ।
बचपन की खट्टी-मीठी शरारतें ,दिल गदगद हो जाता है आज भी याद आता है, दिल कहता है फिर से बच्चा बन अपने बचपन में चले जायें ,लेकिन काश हमारे मन की हो पाती ,कोई बूढ़ा ही नहीं होता ,सब बच्चे ही रहते ।पर प्रकृति के नियम को हम बदल नहीं सकते ।
जिन्दगी की दौड़ में आगे बढ़ते -बढ़ते हमारा बचपन ,हमारी सादगी,मासूमियत सब खो जाती है,हम प्रतिस्पर्धा की दौड़ में कठोर हो जाते हैं ।
 याद आते है बचपन के वो दिन माँ कहती थी बेटा पड़ लो ,माँ के बार-बार कहने पर जब माँ फटकारती थी तो हम किताब लेकर बैठते थे ,हाथ में किताब तो होती थी ,नजरें इधर -उधर दिमाग सपनों की दुनियाँ में उड़ान भरने लगता । बड़े -बड़े सपने हवाई किले बनाना ।फिर अचानक से माँ की आवाज कानों में पड़ना बेटा पढ़ाई कर रहे हो ,हमरा भी ये कहना हाँ माँ पढाई हो रही है ,फिर ऐसा जताना की बहुत थक गये हो फिर कहना माँ भूख लगी है ,माँ का भी फिर अपने बच्चे को पौष्टिक स्वादिष्ट खाना खिलाना कितना मज़ा आता था बचपन में । याद है मुझे वो दिन भी जब किसी विषय को पड़ने का मन न होना या किसी विषय में नम्बर कम आना और माँ पिताजी के बार -बार पूछने पर कहना माँ अभी नम्बर नहीं मिले टीचर ने चेक ही नहीं की , फिर अचानक से माँ पिताजी का मेरा स्कूल बैग चेक करना उसमें से उसी विषय की पुस्तक मिल जाना नम्बरों का सामने आ जाना माँ पिताजी का समझाना बेटा कहते हैं न पहले से पड़ लिया करो फिर अगली बार अच्छे नम्बर लाने का वादा करना आज से अभी से मन लगा कर पढ़ाई करने का वादा करना जिन्दगी बड़े मजे में बीत रही थी बचपन में । ना कल फिकर न आज की फ़िकर सपने इतने बड़े जैसे हम इस दुनियाँ के शनशाह हो, और दुनियाँ हमारी मुठ्ठी में हो ।

" आग और धुआँ "

   💐 " आग और धुआँ "💐

मैं ज्योति उजाले के साथ आयी
सब और उजाला छा गया
मैं ज्योति जलती रही चहुँ और
उजाला ही उजाला  ........
सबकी आँखे चुंध्याने लगीं
जब आग थी ,तो उजाला भी था
उजाला की जगमगाहट भी थी
जगमगाहट में आकर्षण भी था
आकर्षण की कशिश मे, अँधेरे जो
गुमनाम थे  झरोंकों से झाँकते
धीमे -धीमे दस्तक दे रहे थे।

उजाले मे सब इस क़दर व्यस्त थे कि
ज्योति के उजाले का कारण किसी ने नहीं
जानना चाहा, तभी ज्योति की आह से निकला
दर्द सरेआम हो गया , आँखों से अश्रु बहने लगे
काले धुयें ने हवाओं में अपना घर कर लिया
जब तक उजाला था सब खुश थे ।

उजाले के दर्द को किसी ने नहीं जाना

जब दर्द धुआँ ,बनकर निकला तो सब
उसे कोसने लगे।

बताओ ये भी कोई बात हुई
जब तक हम जलते रहे सब खुश रहे ।
आज हमारी राख से धुआँ उठने लगा तो
सब हमें ही कोसने लगे ।

दिये तले अँधेरा किसी ने नहीं देखा
आग तो सबने देखी पर आग का की तड़प
उसका दर्द धुआँ बनकर उड़ा तो उसे  सबने कोसा
उसके दर्द को किसी ने नहीं जाना ।



"मेरा और मेरे मित्र का वार्तालाप "

    "मेरा और मेरे मित्र का वार्तालाप"

कुछ लोग ऐसे होते हैं,जो बेवज़ह खुश रहने की वज़ह पूछते है।
एक बार मेरे एक मित्र मेरे घर आये और कहने लगे ,मित्र तुम यूँ ही बेवज़ह ना मुस्कराया करो ,नज़र लग जायेगी ।
मैं कुछ पल रुकी ,फिर बोली ठीक है ,मैं नहीं मुस्कराउंगी ,
पर क्या हर पल दुखी रहूँ । कुछ पुरानी बातों को याद कर रोती रहूँ ,ठीक है ना फिर नज़र नहीं लगेगी ज़माने की।

मेरे मित्र बोले नहीं यार क्या कहूँ, लोग कहते हैं ये जो तुम खुश रहते हो ना, इसका कारण है कि तुम्हारे पास कोई कमी नहीं है ।
मैंने कहा हाँ कोई कमी नहीं है । भगवान का दिया सब कुछ है ।
पर मेरे खुश होने की वज़ह सिर्फ पैसा ही है ,ये तुम सबकी ग़लतफ़हमी है ।
मेरे मित्र ने कहा हाँ यही तो मैं कहना चाहता हूँ ,कि लोग सोचते हैं कि तुम्हारे पास पैसा है इसी लिये तुम खुश रहते हो ,और पैसा तो आनी जानी चीज है ,आज है कल नहीं इसे अपने आने वाले कल के लिये सँभाल कर रखो।

अपने मित्र की बात सुनकर मैं थोड़ा मुस्करायी , फिर जोर -जोर कर हँसने लगी , मैंने कहा अरे तुम सब को कोई ग़लतफहमी हो गयी है। पैसे से तो सिर्फ सुख सुविधाये खरीदी जा सकती हैं ख़ुशी नहीं ,और सुविधाएँ इंसान को कुछ पल तो आराम देती हैं और फिर नयी आव्यशकता को भी जन्म दे देती है।
मैं खुश रहती हूँ की मैं पुरानी बातों को याद कर -करके अपना आज ख़राब नहीं करती,
मैं खुश हूँ, की मैं आने वाले कल कल की चिँता में अपना समय व्यर्थ नहीं करती ,जो होना है वो तो होगा ही हर पल को जीना यही तो जीवन है ।

मैं अपने आज मैं जीती हूँ , जो बीत गया वो सपना था ,जो आयेगा वो किसने देखा ।
पर जो आज और अभी है ,उसे क्यों व्यर्थ की चिंताओं मैं व्यर्थ करना ।
मेरे खुश रहने की वज़ह है कि मैं वर्तमान मे जीती हूँ।
हर पल यहाँ जी भर जियो ,कल किसने देखा । सिकन्दर भी सारी दुनियाँ जीत कर ख़ाली हाथ गया
बड़े-बड़े राजा महाराजा भी खाली हाथ गये ।
जीतना है, तो दिलों को जीत लो मेरे यार कुछ दिलों मे जग़ह बना लो ।।।।।।


** जगमगाने दो दिलों में प्रेम के दीपक **

    जगमगाने दो दिलों में प्रेम के दीपक
        **       **        **            **       **
 त्यौहार हमारे जीवन में हर्सोल्लास भर देते हैं
एक नयी उमँग, नयी तरंग,
और कुछ प्रेरक सन्देश  ।
                             
दुल्हन सी सजी है धरती
दीपों  के प्रकाश से प्रकाशित
धरा का कोना कोना है ।

स्वागत में  श्री विष्णु लक्ष्मी के
मन्दिर घर, आँगन, का स्वर्णिम रूप
सलोना है।

हर्षोल्लास की उमँग, तरंग है।
मिष्ठानों के उपहार बंट रहे,
खुशियों की सुन्दर रंगोली सजी है ।

काश ये वक्त ,यही थम जाये
दिलों में परस्पर प्रेम का प्रकाश जगमगाये
द्वेष,वैर,ईर्ष्या का अन्धकार मिट जाये
अबकी बार ऐसी दिवाली आये दिलों से
रिश्तों की कड़वाहट मिट जाये ।।

आपसी प्रेम का प्रकाश जगमगाये
प्रेम के प्रकाश का चहुँ और उजियारा जगमगाये ।

क्षणिक आतिशबाजी की जगमगाहट हो
पर ना पटाकों की आग,की अन्धाधुन्ध बरसात हो पर्यावरण में ना दूषित धुएँ की हवाएँ हो ।
अबकी बार सुरक्षित ,शुद्ध ,समृद्ध दीपावली हो ।।

विश्वास और जीत

   " विश्वास और जीत "
💐💐                💐💐

मेरा मुझ पर विश्वास जरूरी है ,
मेरे हाथों की लकीरों में मेरी तकदीर
सुनहरी है ।

क्यों स्वयं से अधिक हम दूसरों पर
यकीन करें।

माना की कोई किसी से कमतर नहीं है ।
पर मैं भी बेहतर और बेहतरीन हूँ
मुझे समझना जरूरी है।

हर एक की है ,अपनी विशेषता
माना मैं नही किसी के जैसा
यही तो मेरी पहचान है ।

मैं जैसा हूँ, मैं वैसा हूँ।
पर मैं जैसा हूँ ,बेहतरीन हूँ
क्योंकि मुझमे है, इन्सानियत की
खुद्दारी है ,मेरी पहचान है,वफादारी ।

मुझे करनी होगी अब जीतने की तैयारी
जीत सुनिश्चित है अबकी बारी
 स्वयं पर विश्वास की तैयारी ।

 मैं किसी से कम नहीं ,परस्पर प्रेम,
सभ्य आचरण, और इन्सानियत
की कलमों से रचना रची है मैंने सारी।

मेरा मुझ पर विश्वास है,
जीत सुनिशित है , मैंने की है पूरी तैयारी।।





**भारतीय ** संस्कृति **

          भारतीय    संस्कृति
**               **                **
भारतीय संस्कृति विश्व की समस्त संस्कृतियों में श्रेष्ठ है।
संस्कृति यानि उच्च से उच्चम संस्कार ।
संस्कार कोई स्थूल वस्तु नहीं ........
संस्कार मनुष्य द्वारा किये गये कर्म व् व्यवहार ...
भारतीय संस्कृति के आदर्श ,सदभावना, परस्पर प्रेम, आदर, आत्मविश्वास का आभूषण जिससे भारतीयता के श्रृंगार में और निखार आता है , क्योंकि सत्य ,और अहिंसा भारतीय संस्कृति की सशक्त लाठी है।
भारतीय संस्कृति हिंसा में कभी भी विश्ववास नहीं करती ।
इसका तातपर्य यह कदापि नहीं की हम कमजोर हैं ।
हिंसा से हमेशा विनाश ही हुआ है हिंसा अपने साथ कई मासूमों की भी बलि चढ़ा देती है ।
हम भी ईंट का जवाब पत्थर से दे सकते है और समय आने पर हम भारतीयों ने ईट का जवाब पत्थर से दिया भी है ।यह समस्त विश्व जनता है । भारत अहिंसा का का पुजारी है और अहिंसा की शक्ति तो महात्मा गाँधी ने बखूबी दिखा दी थी । गोले बारूद से अधिक आत्मविश्वास ,सत्य और अहिंसा की शक्ति है जिसका लोहा भारतीय संस्कृति की के इतिहास में मिलता है।

 सत्य, प्रेम अंहिसा ,के तप का के बल की अग्नि
 के आगे गोले,बारूद, की अग्नि भी शून्य है ।
 गोले ,बारूद तो कुछ एक को ही तबाह करते हैं
 पर भारतीयों के तप के बल की अग्नि में वो तेज है जो
 की कहीं भी भी किसी को बैठे-बैठे ही स्वाहा कर सकती है।
        भस्म कर सकती है । स्वाहा कर सकती है ।

**मैं बेटी हूँ यही तो मेरा सौभाग्य है**

जब मैं घर में बेटी बनकर जन्मी

सबके चेहरों पर हँसी थी ,

हँसी में भी ,पूरी ख़ुशी नहीं थी,

लक्षमी बनकर आयी है ,शब्दों से सम्मान मिला ।

माता - पिता के दिल का टुकड़ा ,

चिड़िया सी चहकती , तितली सी थिरकती

घर आँगन की शोभा बढ़ाती ।

ऊँची-ऊँची उड़ाने भरती

आसमाँ से ऊँचे हौंसले ,

सबको अपने रंग में रंगने की प्रेरणा लिए

माँ की लाड़ली बेटी ,भाई की प्यारी बहना ,पिता की राजकुमारी बन जाती ।

एक आँगन में पलती,   और किसी दूसरे आँगन की पालना करती ।

मेरे जीवन का बड़ा उद्देश्य ,एक नहीं दो-दो घरों की में कहलाती ।

कुछ तो देखा होगा मुझमे ,जो मुझे मिली ये बड़ी जिम्मेदारी।

सहनशीलता का अद्भुत गुण मुझे मिला है ,

अपने मायके में होकर परायी ,  मैं ससुराल को अपना घर बनाती ।

एक नहीं दो -दो घरों की मैं कहलाती ।

ममता ,स्नेह ,प्रेम ,समर्पण  सहनशीलता  आदि गुणों से मैं पालित पोषित                                                                                                     मैं एक बेटी ,मैं एक नारी ....

मेरी  परवरिश  लेती है , जिम्मेवारी , तभी तो धरती  पर सुसज्जित है ,

ज्ञान, साहस त्याग समर्पण प्रेम से फुलवारी    ,

ध्रुव , एकलव्या  गौतम ,कौटिल्य ,चाणक्य वीर शिवजी

वीरांगना "लक्षमी बाई ," ममता त्याग की देवी  "पन्ना धाई",आदि जैसे हीरों के शौर्य से गर्वान्वित है भारत माँ की फुलवारी

"वियय पर्व " "अच्छाई का बुराई पर "

अच्छाई की बुराई पर जीत का पर्व विजयदशमी ।
परमात्मा करे कलयुग में भी कोई रामचन्दर आयें और
मनुष्य की आत्माओं के विचारों और व्यवहारों में पल पोस रहे रावणों को मार गिराये ।

मेरा -मेरा करता मानव , आज बन गया है तू दानव ।
 रावण भी खाली हाथ गया तू गया ले जायेगा संग
शुभ कर्मों की फसल उगा ले मीठी वाणी का प्रसाद
फिर रह जायेगा तेरे जाने के बाद ऐ मानव तेरा नाम ।।

हर वर्ष रावण के पुतले जलाने से अच्छा है ,हम मनुष्य अपने विचारों और व्यवहारों से जो रावण रुपी दुष्कर्मों जैसे द्वेष द्वन्द नफ़रत ईर्ष्या जलन पल रहे दुष्कर्मों का अन्त करे ।
मेरा तो मानना है कि,विजय दशमी का पर्व अवश्य मनायें
रावण का पुतला अवश्य जलायें ,परन्तु इसके पीछे के सत्य को जाने और अपने अन्दर के रावण रुपी अंहकार को भी परस्पर प्रेम की जोत से मुस्कान से सहर्ष मार डालें । 

*भारत का सर्जिकल ऑपरेशन*

भारत का सर्जिकल ऑपरेशन *


देश के रक्षक सर्वप्रथम सम्मानीय
 भारतीय सेना के समस्त वीर जांबाज सैनिकों को मेरा सहृदय धन्यवाद ।......धन्यवाद यह शब्द बहुत संकीर्ण हैं ,देश के रक्षकों के लिये ,यह वो महान लोग हैं जो अपने देश की रक्षा के लिये अपने घर परिवार से लम्बे समय तक दूर रहते हैं कई -कई महीने हो जाते हैं इन्हें माँ ,बाप पत्नी ,बहिन और बच्चों से मिले हुए ,क्या इन वीर देश के रक्षकों को अपनी माँ ,की पत्नी की ,बच्चों की याद नहीं आती होगी ........आती है पर इसलिये की हम यानि मात्र भूमि का प्रत्येक परिवार अपने-अपने घरों में सुरक्षित जीवन जी सके ..ये जांबाज देश के रक्षक अपनी जान की परवाह किये बिना अपनी" जान हथेली पर लेकर सिर पर कफ़न बाँध कर शान से सीमाओं पर पहरा देते हैं ।

मेरी सोच तो यह कहती है ,कि अगर सर्वप्रथम सम्मानीय ,और सबसे ऊँची पदवी कोई है तो अपनी मात्र भूमि के रक्षक वीर सैनकों की ।

अभी कुछ ही दिन पहले भारतीय सनिकों द्वारा आतंकवाद के खिलाफ जो सर्जिकल स्ट्राइक हुई है ,वह अपने आप में बहुत बेहतरीन कदम था भारतीय सैनिकों का ।
आखिर कब तक आतंकवाद का शिकार होते रहेंगे निर्दोष हम लोग । बहुत ही न्यायपूर्ण था यह सर्जिकल ऑपरेशन .... इस विषय में किसी भी बहस की आव्य्शाकता नहीं ....अपनी रक्षा करना हमारा स्वयं का अधिकार है ,आखिर कब तक इतना घिनौना खेल सह सकता है कोई ,हमारे ही देश की सीमाओं में छुप कर हम पर ही वार ।
बहुत हो चुका यह आतंकवाद का घिनौना खेल ।
मेरा तो कहना है ऐसे सर्जिकल ऑपरेशन भारतीय सेना द्वारा होते रहने चाहियें ,ये थोड़े की कोई भी आतंकवादी रुपी जंगली जानवर हमारे घर में घुस आये और हमारे ही परिवार के सदस्यों को मार डाले
और हम उस आतकंवादी जंगली जानवरों को यूँ ही छोड़ दे ।अगली बार फिर आना और हमें भी खा जाना वाह ऐसा तो नहीं होने देंगे ।
इस विषय में मै आदरणीय प्रधानमंत्री जी की सरहना करूंगी की उन्होंने इस ऑपरेशन की सहमति दी  ।कुछ लोग इसे राजनीति से जोड़ रहे हैं ।
राजनीति हो या जो कुछ भी पर देश की सुरक्षा के लिए उठाया गया यह कदम सरहनीय है। अगर आव्य्शकता पड़े तो आगे भी यह कदम भारतीय सेना उठाती रहे । अब बहुत पी लिया आतंकवाद का जहरीला जहर बस अब और नहीं ।।।।।।



"केनवास जीवन के "

जीवन क्या है,मैं आज तक,
 समझ के भी समझ ना पाया ।
जीवन कभी निर्मल ,निर्द्वन्द
निश्छल ,सरल सी प्रतीत होता है ।

और फिर कभी द्वंदों के सैलाब
से लड़ता ,तूफानों में अपनी जीवन
की कश्ती को सम्भालता ।

कभी जेठ की तपती धूप में सुलगता
शीतलता को तरसता ।
फिर वहीँ कभी जाड़े की
सिरहा देने वाली सर्दी में
 दिनकर की तपिश से
स्वयं को सुकून दिलाता ।

जीवन का सिलसिला समझ के
भी समझ नहीं आता ।
हम आयें हैं ,तो जाना क्यों ?
जाना है तो आये क्यों?
शायद ये बात भी सच है
जीवन एक सराय है हम
मुसाफ़िर ,अपने सफ़र को क्यों
ना सुहाना बनाये ,क्यों मोह माया के
चक्कर में अपने सफ़र में कड़वाहट भरें ।

जब हम सब ही मुसाफिर हैं
तो फिर चलो अपने-अपने जीवन के
केनवास में सुन्दर रंग भरें
ताकि हमारे केनवास हमारे इस दुनियां
से चले जाने के बाद आने वाली पीड़ी
के लिये एक सुन्दर मिसाल बने ।


" माँ आदिशक्ति"


           "माँ आदिशाक्ति "

“माँ
आदि शक्ति ” भारत देश एक ऐसा देश है, जहाँ दिव्यशक्ति जो इस सृष्टि का रचियता है,विभिन्न अवतारों रूपों में आराधना की जाती है । परमात्मा के विभिन्न अवतारों के कोई ना कोई कारण अवश्य है ,जब -जब भक्त परमात्मा को पुकारतें हैं ,धरती पर पाप और अत्याचार अत्यधिक हो जाता तब परमात्मा अवतार लेते हैं और धरती को पाप मुक्त करतें है। हमारे यहाँ जगदम्बा के नवरात्रे की भी बड़ी महिमा है ,जगह -जगह जय माता दी ,के जयकारे ,माता के जागरण चौकी ,माता की भेंटों से गूंजते मंदिर ……..पवित्र वातावरण सजे धजे मंदिर मातारानी का अद्भुत श्रृंगार लाल चुनरिया लाल चोला, लाल चूड़ियाँ ,निहार माँ के लाल होते है ,निहाल । माँ का इतना सूंदर भव्य स्वागत ये हमारा देश भारत ही है ,जहाँ माँ का स्थान सबसे ऊँचा है ,फिर चाहे वो धरती पर जन्म देने वाली माँ हो ,या जगत जननी , क्यों न हो वो एक माँ ही तो है ,जो दृश्य या अदृशय रूप से अपनी संतानो का भला ही करती है । कहतें हैं ,धरती पर जब पाप और अत्याचार ने अपनी सीमायें तोड़ दी थी ,साधू सज्जन लोग अत्यचार का शिकार होने लगे थे,चारों और अधर्म ही अधर्म होने लगता था,तब शक्ति ने अधर्म का नाश करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए धरती पर अवतार लिया था, पापियों और राक्षसों का अंत किया,और फिर से धर्म की स्थापना की ,राक्षसों का अंत करने के लिए माँ को कई रूप धारण करने पढे ,माँ गौरी ,माँ दुर्गा , अम्बे ,माँ काली आदि माँ आदिशक्ति कई नामो जानी जाती है । माँ अन्नपूंर्णा बन अपनी संतानों का पालन पोषण करती है , तो कभीमाँ सरस्वती का रूप धारण कर अपनी संतानों में ज्ञान के बीज बोती है, तो वहीँ लक्ष्मी बन जगत को सुख समृद्धि प्रदान करती है। माँ हमेशा से पूजनीय है , नवरात्रों में देवी की पूजा का विशेष महत्व है , नवरात्रों में गुजरात में गरबा का विशेष महत्त्व है । कोल्कता में काली माँ की पूजा ,बंगाली समुदाय द्वारा काली पूजा बड़े ही पाराम्परिक ढंग से व् श्रद्धा से की जाती है । हमें जन्म देने वाली.माँ को भी हमें उतना ही सम्मान देना चाहिए ,क्योंकि धरती पर सर्वप्रथम माँ ने ही हमें समर्थ बनाया ।

"शक्स्यितें"

           "शक्सियतें"
    **    **    **    **
श्कसियतें यूँ ही नहीं बनती कुछ तो होता है ।** ख़ास ** दीपक का प्रकाश माना की श्रेष्टतम होता है ।
पर जो सितारा है ,वो चाहे  कितना भी दबा रह अंधियारे में  जब उजागर होता है तो प्रकाश ही देता है । उसे कौन बुझा सकता है ,जो स्वयम ही शोला हो ।

यूँ तो सभी नेता भाषण के जरिये बड़ी-बड़ी बातें करते आये हैं ,बड़ी-बड़ी योजनाएं हमें ये करना है ।हम ये करेंगे ।फलाँ -फलाँ योजना के लिये लाखों करोड़ों के बजट बिल पास करना इत्यादि ।माना की पैसे से बड़े से बड़े काम होते हैं ,पैसा प्रत्येक मानव की जीविकोपार्जन की प्रथम आवयश्कता भी है ।
परन्तु आज मोदी जी के भाषण की एक बात बहुत सटीक लगी कि  "स्वछता अभियान" के लिये किसी बड़े बजट  की आव्य्शाकता नहीं ।यह बात बिलकुल सटीक है ।
जिस तरह हम लोग अपने -अपने घरों को साफ़ करते है और अपने घरों का कूड़ा घरों के बहार इस तरह फेंकते हैं  जैसे देश तो हमारा कुछ हो ही ना ।
अरे अगर अपने देश की अपनी स्वयम की तरक्की चाहते हो तो यह देश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेवारी है कि अपने -अपने घरों की तरह अपने देश को भी स्वच्छ रखें ।
घर हमारा है तो देश भी हमारा ही है .......


*निधियाँ*


     * " निधियाँ" *
          *   *    *
 विधियाँ जिनसे मिलती हैं
         निधियाँ  ।
यूँ तो जिन्दगी भर भटकता
है मनुष्य , उलझता ,लड़ता ,मरता
क्या-क्या नहीं करता है मनुष्य
पर नहीं अपनाता सही विधि ।
उच्च संस्कार और नैतिक गुणों का
संग है ,उत्तम विधि ,पाने को
वास्तविक निधि ।
उच्च संस्कार ,नैतिकता , हैं हमारी
वसीयत, प्राप्त हुई विरासत में ।
ये मुल्य नही मूल्यवान धरोहर हैं
जिनसे बनता हमारा जीवन कल्प
सरोवर है ।




*फौजी *


फौजी “


एक माँ की पीड़ा , जिसका बेटा फौजी बनता है ,यह एक माँ की ही नहीं उन सभी माँओंओं की  बहनों की पत्नियों की की दिल की आवाज है ,जिनका बेटा, भाई ,या पति देश की रक्षा के लिए ,फ़ौज में भर्ती होता है ।
एक फौजी के परिवार के अंतः करण की मर्मस्पर्शी पीड़ा ,कुछ बाते जो अपने बेटे को फ़ौज की वर्दी में देख माँ के हृदय में निकलती हैं ,   माँ का मस्तक गर्व से ऊँचा हो जाता है , चेहरे की चमक बढ़ जाती है , हृदय से अनगिनत आशीषें देती माँ अपने बेटे को स्वदेश की रक्षा के लिए उसके कर्तव्य पथ पर अडिग रहने की प्रेरणा देती है ।
वहीँ दूसरी और माँ के हृदय में एक पीड़ा एक डर जो उसे हमेशा सताये रहता है ,जुग-जुग जय मेरा लाल न जाने कितनी दुआयें देती माँ हर पल हर क्षण परमात्मा से प्रार्थना करती है अपने लाल अपने जिगर के टुकड़े की सलामती की दुआयें माँगती रहती है एक फौजी की माँ कोई साधारण माँ नहीं होती वह महानात्मा होती है ।
आज जहाँ आतँकवाद ने सम्पूर्ण विश्व में आतंक फैला रखा है ,विनाश ही जिनका धर्म है ।बस अब और नहीं ,बंद होना चाहिए ये आतँकवाद का घिणौना खेल ।
अब विश्व के समर्थवान देशों को एकजुट होकर आतंकवाद को जड़ से खत्म कर देना चाहिए
आखिर कब तक निर्दोष निरापराधी यूँ ही बलि का बकरा बनते रहेंगे ।
जब एक फौजी अपने देश की रक्षा करते हुए वीर गति को प्राप्त होता है ,तब उसके परिवार वालों पर क्या बीतती है …..
माँ की तो आँखों का तारा ही लुप्त हो जाता है उसकी सारी दुनियाँ ही अँधियारी हो जाती है।
पत्नि की हृदय गति ही रुक जाती है ,
मानो सारी दुनिया ही थम जाती है ,आँखें पथरा जाती हैं
सब कुछ अस्त व्यस्त हुआ ,ना जिन्दा में ना मुर्दा में
जीने का मक्सद ही छिन गया  उनका तो सर्वस्व ही छिन गया
बस और नहीं बस और नहीं आतँक खेल अब खत्म करो
निर्दोष मासूमों पर कुछ तो रहम करो ।।

**यूँ ही बेवजह मुस्कराया करें **

      "यूँ ही बेवजह मुस्कराया करो"

यूँ ही बेवज़ह भी मुस्कराया करो ,

माहौल को खुशनुमा भी बनाया करो ।

मुस्कराने के भी कई कारण होते हैं ।

कोई खुश होके  मुस्कराता है ,तो कोई दर्द छिपाने  के लिए मुस्कराता है ।

यूँ ही हम बेवज़ह नहीं मुस्कराते , दिल की उदासी कहीं सरेआम ना हो जाए

इस लिए ही तो खुशियाँ लुटाते हैं ।

मुस्कराने की वजह हमारी ख़ुशी है, ये सच नहीं

दर्द जो रोकर दिखाता है ,वह ही दुखी नहीं होता,

रोने वाले का दर्द तो आसुंओं के साथ बह  जाया करता है,।।

किन्तु जब दर्द बेहिसाब हो जाता है , तब कभी -कभी मुस्करा कर भी दर्द छिपाये जाते है

आखिर कब तक रोये कोई  ……..

क्योंकि कहतें हैं ना ,रोने वाले के साथ कोई नहीं रोता ,

हँसने वाले के साथ सब हँस लिया करतें हैं

ज़माने में कुछ लोग ऐसे भी हैं ,जो मुस्कराने से भी जलते हैं ,

उनसे कहे कोई ,   मुस्कराहट तो एक पर्दा है ,

पर्दा हटायें और दर्द की महफ़िल में शामिल हो जाएँ ।



" नहीं सीखनी मुझे होशियारी "

 " नहीं सीखनी मुझे होशियारी"
**                **              **

दुनियाँ में जब आये थे
हम तो सीधे -साधे भोले भाले थे ।

अब दुनियाँ में रहकर जाने
क्या -क्या सीख गये अभी
भी दुनियाँ वाले कहते हैं
तुम तो कुछ जानते नहीं ।

हाँ नहीं जानना मुझे कुछ भी
दूनियाँ सब मूखोटे पहने हैं ।
चेहरे से भोले पर ,पेशे से लुटेरे हैं ।

नहीं सीखनी मुझे झूठ की बोली
नहीं जीतना किसी को फरेब से

मै अनाड़ी ही सही पर हूँ जीवन
का सच्चा खिलाड़ी , प्रेम की सीधी
पटरी पर ही चलती रहे अपनी गाड़ी।

मैं जैसा हूँ,मुझे रहना है वैसा ही
मैं अनाड़ी , मै भिखारी ,अपनी
सबसे यारी ।
नहीं सीखनी मुझे होशि यारी
किस काम की वो होशियारी
जिसमें अपनो के ही सीने
पर चलादें हम आरी ।
नहीं सीखनी मुझे होशियारी ।



" धर्म और ज्ञान "


*धर्म और ज्ञान*

 धर्म का मर्म इंसानियत 
परस्पर प्रेम और भाईचारा है 
मेरा धर्म इंसानियत मुझे सीखता है 
परस्पर प्रेम के बीज बोकर अपनत्व की फसल उगाओ 
और नफरत की सभी झाड़ियां काट डालो 

  किसी भी समाज की परिस्थिति वातावरण के अनुसार संगठित समुदाय  के कुछ नियम कानून ,यह समुदाय हुआ ना की धर्म ,धर्म का मूल तो सनातन ,सत्य प्रेम ,इंसानियत ही है ।
**दिव्य आलौकिक शक्ति जो इस सृष्टि को चला रही है , क्योंकि यह तो सत्य इस सृष्टि को चलाने वाली कोई अद्वित्य शक्ति है ,जिसे हम सांसाररिक लोग  अल्लाह ,परमात्मा ,ईसा मसीहा ,वाहे गुरु , भगवान इत्यादि ना जाने कितने नामों से पुकारते हैं , अपने इष्ट को याद करतें है।  उस शक्ति के  आगे हमारा कोई अस्तित्व नहीं तभी तो हम सांसरिक लोग उस दिव्य शक्ति को खुश करने की कोशिश में लगे रहते हैं …और कहतें है , तुम्हीं हो माता ,पिता तुम्हीं हो , तुम्हीं हो बन्धु ,सखा तुम्ही हो ।
   धर्म के नाम पर पाखंड करना तुम ऐसा करोगे तो ऐसा हो जाएगा ऐसा करोगे तो.....क्या कोई भी सच्चा धर्म हमें किसी काम के लिए बाध्य कर सकता है ,नहीं ना ... हां धर्म हमें बाध्य करता है कि किसी का बुरा ना करो ना सोचो ....प्रत्येक धर्म का मूल इंसानियत और भाईचारा ही है ..
  दूसरी तरफ , परमात्मा के नाम पर धर्म की आड़ लेकर आतंक फैलाना बेगुनाहों मासूमों की हत्या करना,विनाश का कारण बनना , ” आतंकवादी “यह बतायें ,कि क्या कभी हमारे माता पिता यह चाहेंगे या कहेंगे, कि  जा बेटा धर्म की आड़ लेकर निर्दोष मासूमों की हत्या कर  आतंक फैला ?  नहीं कभी नहीं ना , कोई माता -पिता यह नहीं चाहता की उनकी औलादें गलत काम करें गलत राह पर चले । धर्म के नाम पर आतंक फ़ैलाने वाले लोगों ,आतंक फैलाकर स्वयं अपने धर्म का अपमान ना करो  । धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वालों को शायद अपने धर्म का सही ज्ञान ही नहीं मिला है , कोई भी धर्म हिंसा की शिक्षा नहीं देता , अहिंसा की ही शिक्षा देता है , प्रत्येक धर्म का मूल परस्पर प्रेम ,और भाईचारा ही है , अशिक्षा सही शिक्षा ना मिलना ,भी आतंकवाद का प्रमुख कारण हो सकता है , क्योंकि वास्तविक शिक्षा प्रगति का मार्ग दिखाती है ,  ”सभ्यता की सीढ़ियाँ चढ़ाती है ” “,विश्व कौटूम्बकं की बात सिखाती है ,”आतंक को शिक्षा से जोड़ना पड़ेगा क्योंकि आतंक फ़ैलाने वालों को सही ज्ञान सही मार्गदर्शन की  आवयश्कता है ,क्योंकि..   हिंसा को हिंसा से कुछ समय के लिए दबाया तो जा सकता है पर ख़त्म नहीं किया जा सकता , इसके लिए सही मार्गदर्शन की अति आवश्यक है ।

* ईद मुबारक *

बकरा ईद की सबको बधाई ।
जब हम स्कूल मे पड़ते थे ,तभी से हमारे स्कूलों में जिस तरह होली ,दिवाली दशहरा,आदि त्योहारों की छुट्टी होती आ रही है उसी तरह मीठी ईद ,बकरा ईद की भी छुट्टी होती है आज भी ।
त्यौहार कोई भी हो मेरा दिल हर्षोल्लास से भर जाता जाता है एक नयी उमंग एक नयी तरंग । स्वादिष्ट व्यंजन बाजार की रौनक ही बड़ जाती है ।

इन्सानियत मेरा धर्म है । जिस भी धर्म में कुछ अच्छा होता है मै उसे ग्रहण करने में कोई आपत्ति नहीं समझती।

यूँ तो सभी धर्म परस्पर प्रेम और सौहार्द की बात सिखाता है। कोई भी धर्म  अपने धर्म के नाम पर हिंसा तो शायद ही करने की बात करता हो ।फिर क्यों ये धर्म के नाम पर ये दंगा फसाद आतंक फैलाना क्यों?

ईद है अच्छी बात है ,पर किसी बकरे को पहले मारो फिर बलि चढाओ प्रसाद रूप में बाँटो।
कहते हैं हर हर जीवात्मा में आत्मा होती है ।

फिर अपनी ही जैसी किसी आत्मा को मारना उसकी बलि चढ़ाना ......
किसी जानवर के तन में भी तो मनुष्य जैसी ही कोई आत्मा वास करती है , सोचिये कभी कुछ ऐसा हो कि दुर्भाग्यवश किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है और और उस मनुष्य के मृत शरीर का कुछ अंश किसी मंदिर के पास जाकर गिरता है और अकस्मात ही आतंक्वाद खत्म हो जाता है तो बताइए आप क्या करेंगे ।अब क्या हर वर्ष आतंक समाप्त करने की ख़ुशी में मनुष्यों की बलि चड़ाने
लग जायेंगे ।इंसानों का कोई भरोसा भी नहीं अपने स्वार्थ के लिये अन्धो की तरह अपनों का ही खून पीने लग जाये।
किसी भी मनुष्य का सबसे पहला धर्म इंसानियत ही है और होना चाहिये ।
हिन्दू,मुस्स्लिम,सिख ,इसाई आदि यह सब धर्म किसी भी देश के काल परिस्थिति एवं वातावरण कॆ अनुसार बनते चले गये  हम लोग उनके उन्यायी
परम्परायें त्यौहार उत्सव वो होते हैं ,जो दिलों में प्रेम आपसी सौहार्द बढायें 

" हँसिये हंसाइए हँसना संतुष्टता की निशानी है "





हँसिये ....हँसाइये ....क्यों रो -रोकर जियें जिन्दगी
जिन्दगी का नाम ही तो कभी ख़ुशी कभी ग़म है




हँसना संतुष्टि की निशानी है।

खुश रहने का सबसे बड़ा मंत्र है संतुष्टि… प्रसन्नता ख़ुशी केवल भाव ही नहीं अपितु जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।
ख़ुशी या प्रसन्नता को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता।

 ख़ुशी प्रसन्नता सृष्टिकर्ता द्वारा दिए गए अनमोल रत्न हैं। ख़ुशी को जितना लुटाया जाए उतनी बढती है।

ख़ुशी या प्रसन्नता वातावरण को सुंदर बनाते हैं।हँसना एक सकारात्मक सोच है ,जिससे शुभ शक्तियों का सांचर होता है।

कुछ लोग मानते हैं की ख़ुशी सिर्फ धन -दौलत वालों के पास होती है।
परन्तु यह सत्य नहीं है। धन -दौलत वाले अधिक चिंता ग्रस्त रहते हैं ,उन्हें इस बात की चिंता रहती है। की उनकी दौलतकहीं चोरी न हो जाये नुकसान न हो जाये।

हाँ धन -दौलत वालों के पास सुविधाएँ अधिक अवश्य होती हैं परन्तु अधिक सुविधाएँ ही असुविधा का भय का कारण होतीं हैं। जबकि कम दौलत वाला अधिक खुश रह सकता है.।
ख़ुशी बाहरी हो ही नहीं सकती, क्योंकि बाहरी वस्तुएं हमेशा रहने वाली नहीं होती जो ख़ुशी आन्तरिक होती है, वह टिकती है ।
इसलिए कहते हैं खुश रहो सवस्थ रहो ,क्योंकि स्वस्थ मन से सवस्थ जीवन जिया जा सकता है।

अगर हम बच्चों की तरफ देखे तो पाएंगे की वह हमेशा खुश रहतें हैं।उन्हें कोई कोई चिंता भय नहीं होती। वह निर्मल होतें हैं। निर्मल यानि बिना मल के मल इर्ष्या द्वेष का अहंकार का। हम स्वयं को निर्मल करें कोई मल न हों। कोई दुर्भावना न हों फिर देखिएगा तरक्की कैसे आपके कदम चूमेगी।

जो होना है वो होकर रहेगा। फिर क्यों चिंता करना। चिंता काँटों का जाल है ,ख़ुशी फूलों का बिस्तर। ख़ुशी को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता ,इसे पाया जाता है यह वो बेल है जो हमेशा फैलती है खुश रहना जीवन की औषधी है जो जीवन को अरोयग्य बना खुशहाली फैलाती है।

जीवन में उतार चढ़ाव तो आते रहेंगे। सुख दुःख में सम रहना जीवन की हर परिस्थिति में सम रहना एक अच्छे मानव के सन्देश हैं।
जिस तरह फिल्मो में काम करने वाला नेता या अभिनेता या अभिनेत्री आदि अन्य अपने अपने किरदार को अच्छे से निभाते हैं कभी हंसाते है कभी रुलातें हैं हैं इसी तरह संसार में रहते हुए हमे अपने अपने किरदार को निभाना होता है।
परन्तु मानव नाटक करते -करते यह भूल जाता है और संसार पर अपना अधिकार समझने लगता है। एक फर्क इतना होता है की संसार के रंग -मंच में हमारा किरदार लम्बा होता है हमें इतनी छूट होती है कि हम अपना भला बुरा समझ सकें अपनी आवयश्कता अनुसार सही राह चुन सकें।
 तो फिर क्यों ना हम जिन्दगी के रंगमंच पर अपने किरदार को ख़ूबसूरती से हंसी ख़ुशी निभाये,कि पर्दा गिर भी जाए यानि हम इस दूनियाँ से चले  भी जायें उसके बाद भी हमारे जीने के ढंग की तारीफें होती रहें ।




" शिक्षक का स्थान सबसे ऊँचा "

शिक्षक का स्थान सबसे ऊँचा”


आदरणीय, पूजनीय ,

सर्वप्रथम ,  शिक्षक का स्थान  समाज में सबसे ऊँचा

शिक्षक समाज का पथ प्रदर्शक ,रीढ़ की हड्डी

शिक्षक समाज सुधारक ,शिक्षक मानो समाज.की नींव

शिक्षक भेद भाव से उपर उठकर सबको सामान शिक्षा देता है ।

शिक्षक की प्रेरक कहानियाँ ,प्रसंग कहावते बन विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा स्रोत ..
अज्ञान का अन्धकार दूर कर ,ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं।

तब समाज प्रगर्ति की सीढ़ियाँ चढ़ उन्नति के शिखर पर
 पहुंचता है,

जब प्रकाश की किरणे चहुँ और फैलती हैँ ,
तब समाज का उद्धार होता है ।
बिन शिक्षक सब कुछ निर्रथक, भरष्ट ,निर्जीव ,पशु सामान ।

शिक्षक की भूमिका सर्वश्रेष्ठ ,सर्वोत्तम ,
नव ,नूतन ,नवीन निर्माता सुव्यवस्तिथ, सुसंस्कृत ,समाज संस्थापक।

बाल्यकाल में मात ,पिता शिक्षक,  शिक्षक बिना सब निरर्थक सब व्यर्थ।

शिक्षक नए -नए अंकुरों में शुभ संस्कारों ,शिष्टाचार व् तकनीकी ज्ञान की खाद डालकर सुसंस्कृत सभ्य समाज की स्थापना करता है ।।।।।।।



"महिलाओं की पोषकों पर ही चर्चा क्यों ?"

      "  महिलाओं की पोशाकों पर ही चर्चा क्योंं ?"

 संस्कृति और संस्कार सिर्फ महिलाओं के लिये ही क्यों ?
हर देश की अपनी सभ्यता और संस्कृति होती है ,यह बात निसन्देह सत्य है ।
हमारे संस्कार ,संस्कृति,परम्परायें प्राकृतिक वातावरण का
परिवेश जो हमारी जड़ों के साथ जुड़ा होता है ।वह हमें विरासत के रूप में मिलता है ,और उन संस्कारो को हम परम्पराओं की विरासत के रूप में स्वीकार कर अपना लेते हैं ।
संस्कृति ,संस्कारों और परम्पराओं को अपनाना बहुत अच्छी बात है,परन्तु उन्ही परम्पराओं को आने वाली पीड़ी पर थोपना उन्हें भावात्मक रूप से मजबूर करना की यह हमारे संस्कार हैं हमारी संस्कृति है बस तुम्हे आँखे बन्द करके इन्हें अपनाना है ।

 मेरी दृष्टि में यह अपराध है ।

कुछ परम्पराओं में वक्त के साथ अगर बदलाव आता है ,तो कोई दोष नहीं ।
भारतीय संस्कृति की विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान है।
संस्कार और संस्कृति कोई चिन्ह तो नहीं ?

संस्कार हमारे कर्मो में होने चाहियें जिससे की संस्कृति की झलक हमारे कर्मो में और व्यवहार में झलके ।

संस्कृति मात्र  भोजन और पोशाकों में निहित नहीं होनी चाहिये।

 कोई महिला क्या पहनती है या क्या पहने उसकी आजादी हाँ शालीनता सभ्यता होनी आव्यशक है । सामने वाले की नज़र में भी शालीनता होनी चाहिये ।

महिलायें क्या पहने क्या ना पहने अगर इस पर चर्चा होती है तो फिर पुरुष वर्ग को क्यों इससे वंचित रहे उनके पहनावे पर भी चर्चा होनी आव्यशक है ।।

" हम जैसा सोचते हैं ,वैसा ही बनने लगते हैं "

मनुष्य की स्वयं की सोच ही उसके सुख और दुःख का कारण बनती है **

  किसी भी मनुष्य की सोच ही उसके सुख और दुःख का कारण बनती है  मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बनने लगता है ।

  नकारात्मक सोच हर मानव को घिरे रहती  है ,कहीं कुछ गलत न हो जाए ,कोई हमारे लिए बुरा सोचता होगा किसी ने हमारे लिए बुरा कर दिया तो .....

 सब हमारे दुश्मन हैं हमारी तो किस्मत ही खराब है न जाने क्यों हमारे साथ ही सब गलत क्यों होता है हमारा क्या होगा हम जो काम करतें है कभी ठीक नहीं होता ।

    हां -हां  मैं तुम्हारी किस्मत हूं  मैं  तो कई बार  तुम्हारे दरवाजे पर आईं तुम्हें आवाज भी दी पर तुम हर बार अपने ख्यालों में गुम नकरात्मक सोच के साथ मिले।
  मैंने तुम्हारे अच्छे भाग्य ने तुम्हें कई बार समझाने की कोशिश भी की पर तुम नकारात्मकता से बाहर ही नहीं आये ।
  चलो अभी भी देर नहीं हुई है कुछ नहीं बिगड़ा ना बिगड़ने वाला है ,हुम्हारी नकरात्मक सोच ही तुम्हें खाये जा रही है।
 तुम्हें अंदर ही अंदर दीमक की तरह खोखला कर रही है चलो कुछ अच्छा सोंचे किस में इतना दम की हमारा कुछ बिगाड़ सके ,हम स्वयं अपने बादशह है

  **हमारे विचार हमारी संपत्ति हैं क्यों इन पर नकारात्मक सोच का दीमक लगने दें चलो  कुछ  सोंचे कुछ अच्छा करें **

* श्री कृषण जन्माष्टमी की बधाई *

भाद्रपद की कृष्ण अष्टमी
           हर्षित मन ,चहुँ ओर सब प्ररफुल्लित**
     
           * *   *दिव्य आलौकिक
              "श्री कृष्ण " जन्माष्टमी की
                  बधाई हो, बधाई
       
             सवागत में कृष्णा के , घर ,मंन्दिर और
             बाज़ारों की साज सज्जा तो निहारो
             मानो धरती पर स्वर्ग ही ले आई।
         
            यशोदानन्द का लाला सारे जग का
           रखवाला , बन नन्द गाँव का ग्वाला
                माखनचोर वो नंदकिशोर
         
           गोपियों का प्यारा ,दिव्य आलौकिक
                  प्रेम की भाषा सिखा गया ।

     धर्म की रक्षा हेतु गीता का ज्ञान भी दे गया।
     धरती को अंहकार के अन्धकार से पाप मुक्त किया
 
  कृष्ण ,गोपाल , कान्हा ,माखन चोर नंदकिशोर ,केशव ,मुरारी
  ना जाने कितने नामों से सबका लाडला ,बन सबके दिलों में
  राज कर अपना दीवाना कर गया कृष्ण।
 जन्म दिवस के शुभ बेला ,मेरा कृष्ण सबका चेला
वो अलबेला सखा ,सहेला ।
जन्म दिवस पर स्वयं आकर देखो कन्हैया
धरती वासियों ने तुम्हारे जन्म दिवस पर
 स्वागत में धरती को स्वर्ग सा किया अलबेला
सुवगतम् सुस्वागतम्  राधे संग कृष्णा ।
पधारो पधारो ........

" मेरी जड़ों ने मुझे सम्भाल रखा है "

            "मेरी जड़ों ने मुझे सम्भाल रखा है "
                        ******
     *        *********************
     मेरी जड़ों से मेरी खूबसूरती है
     मेरे माली का ,शुक्रिया जिसनें
     मेरे बीजों को पौष्टिक खाद दी,
     मुझे जल से सींचा, सूर्य ने मेरे तेज
     को बढ़ाया ।
   
     मैं जो आज बाग़ बगीचों में
     कहीं किसी की क्यारियोँ में
     घरों के आँगन की खूबसूरती
     बड़ा रहा हूँ ,कि मेरी जड़ों ने मुझे
     सम्भाल रखा है ।वरना  मैं तो
     कब का बिखर गया होता ।
     
   

     मेरे स्वभाव में एक आकर्षण है
     जो सभी को अपनी और आकर्षित
     कर लेता हूँ । मेरी कई प्रजातियाँ हैं
     मेरा हर रंग ,हर रूप सहज ही
     आकर्षक है ।

     मेरी महक पवन संग-मिल कर
     वातावरण महकाती है,मुझसे
     प्राण वायु भी है ।
     मुझसे इत्र भी बनाई जाती है
     मैं प्रेम प्यार का  प्रतीक हूँ ।
     मित्रता आपसी भाईचारे में भी
     प्रेम की डोर बाँधने के लिये
     मैं सम्मानित होता हूँ ।

     ख़ुशी हो या ग़म मैं हर स्थान पर
     उपयोग होता हूँ ।

     अपनी छोटी सी जिन्दगी में
     मैं किसी ना किसी काम आ जाता हूँ
     सार्थक है जीवन मेरा , जो मैं
     किसी रूप मे काम तो आ जाता हूँ ।
     मैं प्रकृति की अनमोल देन ...

         " मै पुष्प हूँ ,   "

     अपनी छोटी सी पर
     सार्थक जिंदगी से मैं खुश हूँ ।
   
     



" कुदरत के नियम "

 तूफानों का आना भी
कुदरत का नियम है   ।

क्योंकि तूफ़ान भी तब
आते हैं ,जब वातावरण
में दूषित वायू का दबाब
बढ जाता है।

ठीक इसी तरह मनुष्यों
के जीवन में भी तूफ़ान आतें हैं।
तूफानों का आना भी स्वभाविक है ।

जिस तरह कुछअन्तराल के बाद
विष का असर नज़र आने ही लगता है ।

फिर इल्जाम लगाना
जब सीमायें ही नहीं बाँधी
तो बाँध के टूट जाने का
कैसा डर?

कभी नहीं हुआ कि
काली घनी अँधेरी रात के
बाद दिनकर से प्रकाशित
सुनहरी ,चमकीली ,तेजोमयी
सुप्रभात ना आयी हो।

प्रकृति अपने नियम
कभी नहीं तोड़ती
         
मनुष्य ही अपनी हदें पार
कर जाता है ,और इल्जाम
दूसरों पर लगता है ।

आखिर कब तक सहे कोई
विष चाहे कैसा भी हो
असर तो दिखायेगा ही ।

कहते भी हैं ना ,बोये पेड़ बबूल
का तो आम कहाँ से आये ।
फिर सोचिये जैसा बोएँगे
वैसा फल मिलेगा ।

" अमर प्रेम की पवित्र डोर "

रक्षा बंधन का पर्व

भाई बहन का गर्व ,

निश्छल पवित्र प्रेम का अमर रिश्ता

बहन भाई की कलाई में राखी.बांधते हुए कहती है,

भाई ये जो राखी है ,ये कोई साधारण सूत्र नही

इस राखी में मैंने स्वच्छ पवित्र प्रेम के मोती पिरोये हैं ,

सुनहरी चमकीली इस रेशम की डोर में ,

भैय्या तुम्हारे  उज्जवल भविष्य की मंगल कामनाएं पिरोयी है ।

रोली ,चावल ,मीठा ,लड़कपन की वो शरारतें ,

हँसते खेलते बीतती थी दिन और रातें

सबसे प्यारा सबसे मीठा तेरा मेरा रिश्ता

भाई बहन के प्रेम का अमर रिश्ता कुछ खट्टा कुछ मीठा ,

सबसे अनमोल मेरा भैय्या,

कभी तुम बन जाते हो मेरे सखा ,

और कभी बड़े  भैय्या ,  भैय्या मै जानती हूँ ,तुम बनते हो अनजान

पर मेरे सुखी जीवन की हर पल करते हो प्रार्थना।

 भैय्या मै न चाहूँ ,तुम  मुझको दो सोना ,चांदी ,और रुपया

दिन रात तरक्की करे मेरा भैय्या ,

ऊँचाइयों के शिखर को छुए मेरा भैय्या

रक्षा बंधन  की सुनहरी चमकीली राख़ियाँ

सूरज ,चाँद सितारे भी मानो उतारें है आरतियाँ

मानो कहतें हों ,काश कभी हम भी किसी के भाई बने,    और कोई बहन हमें भी बांधे राखियाँ

थोड़ा इतरा कर हम भी दिखाएँ कलाई   और कहेँ देखो इन हाथों में भी है राखियाँ ।



** स्वतन्त्रता दिवस की शुभ बेला **

        **"स्वतन्त्रता दिवस की शुभ बेला "**
            ********************
                    ***********
        स्वतन्त्रता दिवस की शुभ बेला
        मन में उत्साह हृदय परफुल्लित
     
        आजादी की सतरवीं वर्षगाँठ
        पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैतालिस।
     
         हमारा देश भारत अंग्रेजों की गुलामी
         की जंजीरो से आजाद हुआ था।
     
         आजादी का प्रतीक झण्डा हमारे देश
         की मान शान अभिमान तिरंगा
         आत्मसम्मान तिरंगा ,न कुछ ऐसा
         करें  की अपमानित हो तिरंगा।
     
         हाँ आज हम स्वतन्त्र हैं ।
         सतंत्रता है,हम कुछ भी करें
         विचारों की व्यवहारों की ,
         अपना लक्ष्य चुनने की स्वतन्त्रता
         आज हम किसी भी तरह परतन्त्र नहीं
         यहां तक की मतदान द्वारा देश का नेता
         चुनने की स्वतन्त्रता।
       
         भव्य आलिशान मकान
         बनाने की स्वतन्त्रता
       
        पर इस स्वतन्त्रता का अनुचित
        लाभ उठाना उचित नहीं ।
     
         देश आपका है, फिर क्यों आपके
         देश की सड़कों पर जगह जगह
         कूड़े का ढेर पड़ा मिलता है ,
         भारत वासी कहते हैं आज हम
         स्वतन्त्र हैं ,क्या स्वतंत्रता सिर्फ अपने
         निजी स्वार्थ के लिये है, अपने घरों का
         कूड़ा बहार देश की सड़कों पर फैकने की है
          अजी आप लोग तो स्वार्थी हो गये ।
     
         अजी स्वतन्त्रता सिर्फ आपकी निजी नहीं ,
         देश की स्वतन्त्रता के लिये निस्वार्थ बलिदान
         को भारत माँ भूल नहीं सकती ।
 
        आज स्वतन्त्रता दिवस के दिन प्रण हैं लेते
        निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर अपने देश को
        स्वच्छ ,रामरणीय ,व् समृद्ध बनाये ।।।।।
       
   
     






       
   
     
        

"मौन"

     "मौन"

    सुनी सुनायी बातों को तो
   अक्सर लोग सुनते हैं
कुछ याद रखते हैं कुछ
भूल जाते हैं।
पर मौन की भाषा जो समझ
जाते है।वो ख़ास होते हैं ।
क्योंकि ?
खामोशियों में ही अक्सर
गहरे राज होते है ।
जुबाँ से ज्यादा मौन की भाषा
में कशिश होती है ।

जब तक मैं बोलता रहा
किसी ने नहीं सुना ।
कई प्रयत्न किये ,
अपनी बात समझाने
की कोशिश करता रहा
चीखा चिल्लाया गिड़ गिड़ा या
प्यार से समझाया, हँस के रो के
सारे प्रयत्न किये पर कोई समझ
न पाया ।

पर अब मै मौन हूँ ।
किसी से कुछ नहीं कहता
ना कोई शिकवा ना शिकायत ।

पर अब बिन कहे सब मेरी
बात समझ जाते जाते हैं
लोग कहते हैं,कि मेरी खानोशी
बोलती है।
अब सोचता हूँ व्यर्थ बोलता रहा
मौन में तो बोलने से भी ज्यादा
आवाज होती है।


"सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हामारा "

      "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा"


    मेरे  देश का तिरंगा
आकाश की ऊँचाइयओं
में बड़ी शान से लहरा रहा है ।

सुख समृधि और शांति के गीत
गुनगुना रहा है ।

अज्ञान का अन्धकार अब छंट गया है
ज्ञान के प्रकाश का उजियारा अब प्रकाश
फैला रहा है ।

सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा
की बातें अब सच हो रही हैं ।

प्रेम की मीठी भाषा से हमने सबके दिलों
में जगह बना ली है ।

विश्व कौटूमबकम "अनेकता में एकता" की
नींव मजबूत कर डाली है ।

अपनी सबसे मित्रता नहीं किसी से वैर
स्वर्णिम युग की स्थापना
सतयुग फिर से आ रहा
धरा फिर से बन रही स्वर्ग
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा
तिरंगा लहरा रहा हर्षित
प्रफुल्लित सहर्ष ।।

" भारत माता की जय "

 
     "मेरा भारत महान"
   
     "माँ भारत माता की जय"
  सरल स्वभाव मीठी वाणी ,
आध्यमिकता के गूंजते शंख नाद यहाँ


अनेकता में एकता का प्रतीक मेरा भारत देश महान ,
विभिन्न रंगों के मोती हैं  ,फिर भी माला अपनी एक हैं


मेरे देश का अद्भुत वर्णन ,मेरी भारत माँ का मस्तक हिमालय के ताज से सुशोभित


सरिताओं में बहता अमृत यहाँ,
जड़ी -बूटियों संजिवनियों का आलय


प्रकृति के अद्भुत श्रृंगार से सुशोभित
मेरा भारत देश महान ,अपने देश की महिमा का क्या करूं व्याख्यान।


जी चाहे मैं हर जन्म में बन देश का रक्षा प्रहरी शीश पर शीश झुकाऊँ।


देश की खातिर प्राणों की बलि चढाऊँ, भारत माँ की शान में जो दुश्मनों की आँख भी उठ जाए।


तो उन्हें"   छटी का दूध" याद दिलाऊँ दुश्मन " दाँतों तले ऊँगली दबाएँ" " उल्टे पाँव घर लौट जाएँ "।


भारत माँ की आन में, भारत की शान बन जाऊँ
मैं अपनी मातृ भूमि भारत माँ का माँ जैसा ऊँचा सम्मान करूँ ।।


मैं भारत माँ का माँ के जैसा  सम्मान करूँ।
"भारत माँ की जय "   "मेरा भारत महान"।।


 






















"ये कौन चित्रकार है"

  "  ये कौन चित्रकार है "

सच मे प्रकृति का चित्रकार स्वयं
कितना सुन्दर होगा ।जिसने प्रकृति को
इतना सुन्दर रूप दिया है ।

विशाल पर्वत,वृक्ष नादियाँ,झरने
अन ,जल,   पुष्प जड़ी -बूटियाँ
 और मौसम के विभिन्न अवतार
    सच में ये कौन चित्रकार है ,


ग्रीष्म की उषणता से राहत दिलाने आया है ,
 मौसम सावन का प्रकृति आनन्दित है ,
 प्रफुल्लित पुलकावली ,मेघ मल्हार गा रहे
 प्रकृति स्वयं अपना श्रृगार कर रही ।
 बादल भी आँख मीचौली कर रहे ,
धरती पर अपना बसेरा कर रहे
फिर फिर छम छमा छम बरस रहे

" पहचान मेरी "

  "पहचान मेरी "

हाँ मैं यूँ ही इतराता हूँ ।
खुद पर नाज भी करता हूँ।

अपनी खेती मैं करता हूँ
शुभ संकल्पों के बीज मैं बोता हूँ ।

क्यों कहूँ मैं कुछ भी नहीं
मैं किसी से कमतर नहीं ।

मुझ से ना पूछो मेरी पहचान
मैं क्यों किसी के जैसा बनूँ ।

क्यों ना मैं जैसा स्वयं चाहता हूँ
    वैसा बनूँ।
मैं जैसा हूँ ,मैं वैसा ही हूँ ।

मैं तो बस अपने जैसा हूँ
नहीं मुझको करना है मेकअप।

नहीं बनना मुझे किसी के जैसा
मेरा अस्तित्व मेरी पहचान।

मेरे कर्म बने मेरी पहचान
मुझसे ना छीनो पहचान मेरी ।

कर्मो की खाद मे मैंने शुभ संकल्पों
      के बीज मैंने डालें है
आने वाले कल मैं जो खेती होगी
उससे समस्त वसुंधरा पोषित होगी
मेरी जीवन यात्रा तब स्वर्णिम होगी
    और मेरी पहचान पूरी होगी ।।।।।।।






**फरिश्ता ऐ आसमान **

 धरती पर फरिश्ता ऐ ,
 आसमान होते हैं।
 माँ बाप तो दुआओं की खान होते है । 
जीवन के हर मोड़ पर 
कवच की तरह माँ बाप 
सुरक्षा की ढाल होते हैं।

हर दर्द की दवा होते हैं 
फल फूलों से लदे वृक्ष और 
ठण्डी छाँव होते हैं ।

अनकहे शब्दों की अरदास होते हैं।

माँ बाप के ना होने का दर्द,
एक अनाथ बच्चे से पूछो,
बेटा सुनने को जिसके कान तरसते हैं।।



** मेघ मल्हार **

        "मेघ मल्हार "

मेघों ने मल्हार है गया
रिम-झिम,रिम-झिम वर्षा
से सिंचित हो गया प्रकृति
का श्रृंगार निराला ।
मौसम भी क्या खूब है ,आया

कभी धूप ,कभी छाया,तो
कभी पल भर मे छा जाते,
नील गगन में हर्षोल्लास
के बादल।

और भीग जाते पल भर मे
 वर्षा से सबके आँगन
वसुन्धरा हुयी प्रफुल्लित
वृक्षों पर नयी कोपलें पुलकित।

 फल फूलों से समृद्ध                              
 प्रकृति हो रही है हर्षित।

 वसुन्धरा पर समृद्ध हर कंधरा।
 मोर  मोरनी निर्त्य कर रहे
 पक्षी भी चहक लगे हैं अब तो
आओ हम सब मिल मंगल गान गायें
 गीत ख़ुशी के गुनगुनायें
 झुला झूलें ,नाचे गायें ।।


" राम नाम धन "

      " राम नाम धन "



    सिमरन ,सिमरन सिमरन
   नाम धन जो मैंने पाया,
मैंने तो मानों संजीवनी
खजाना पायो ।

सुमधुर सुरमयी
रूप माधुरी स्वरूप
तुम्हारो मनमोहिनी
नज़र हटे ना,नजर झुके ना
हर पल तुमको निहारूं।

जब कोई प्रभु  दिल से पुकारूं
तुम तब-तब  उसको जीवन सवारों

तुम ही जग के पलानहार
तुम ही सबको पार उतारो
तुम सबके दिल की जानो


तुम हो जो पुष्पों में सुगन्ध
प्रकृति में ज्यों प्राणवायु
आकाश में विद्युत तरंगे ।

भाव प्रेम और श्रद्धा हो तो
बड़ी सरलता से तुम मिल जाते
तर्क-वितर्क हो तो ना कोई तुमको
जाने ना पहचाने ।


मिलते तुम प्रभू उसी को
जो निर्मल मन से तुम्हें पुकारे ।


"करें योग निरोग रहें "

    " करें योग निरोग रहें "
आलस्य को त्यागो
मेरे मित्रों अब तो जागो।

कब तक कडवी गोलीयाँ
निगलोगे । तन में रसायनों
का ज़हर भरोगे ।

करो योग रहो निरोग
योग से कट जातें हैं रोग।

यह है शुभ संयोग ,प्राचीन काल
से भरतीय परम्परा में योग का
है शुभ संयोग ।

आधुनिकता वाद के इस काल मे
जहाँ मशीनों की तरह भाग रहा है मानव
श्स्वन तंत्र में घुल रहा है जहर
आओ इस जहर को बाहर निकले ।

प्रतिदिन योग का समय निकालें
करें योग रहें निरोग ।।

*** जीतना सीखें****

           * जितना सीखें*

कई बार ऐसा होता है की हमें किसी भी कार्य में सफलता हासिल नहीं होती । हमारी जी तोड़ मेहनत के बावजूत हमें अपनी मंजिल नहीं मिलती ,हम अन्दर से बुरी तरह टूट जाते हैं हर रास्ता अपना लिया होता कोई और रास्ता नजर नहीं आता।

हम निराशा के घने अन्धकार में घिरने लगते हैं,हमारा किसी काम में दिल नहीं लगता ।हम स्वयं को निठल्ला समझने लगते हैं यहाँ तक की दुनियाँ वाले भी हमें बेकार का या किसी काम का नहीं है ,समझकर दुत्कारते रहते हैं
और यही निराशा हमें बुरी तरह से तोड़ कर रख देती है।
और हम आत्महत्या तक के बारें में तकसोचने लगते हैं

1. सबसे पहले तो अपनी हार से निराश मत होइये

2, हार और जीत तो जीवन के दो पहलू हैं ।

3.हार की वजह ढूंढने की कोशिश करिये ।

4.अगर फिर भी सफलता नहीं मिलती तो रास्ता बदल लिजीये।

5.प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अलग पहचान होती है

6.सारे गुण एक में नहीं होते ,अपनी विशेषता पहचानिये।

7.आप में जो गुण है उसे निखारिये अपना सौ प्रतिशत लगा दीजिये सफलता निश्चित
 आपके कदम चूमेगी ।

8.बार -बार प्रयास करने पर भी अगर किसी काम में सफलता नहीं मिल रही है तो काम करने का तरीका बदल कर देखिये ।

9.नकारात्मक विचार जब भी आप पर हावी होने लगें तो तुरन्त अपने विचार बदल लीजिये ।

10 हमेशा सकारात्मक सोचिये ।और कभी भी किसी के जैसा बनने की कोशिश मत करिये ।

11.आप अपने स्वभाव में जियें और अपने आन्तरिक गुणों को पहचान कर उन्हें निखारिये।

12.अपने रास्ते खुद बनाईये।

13. कभी भी लकीर के फ़कीर मत बनिये ।

14. हमेशा अच्छा सोचिये ।

15.अपनी नयी पहचान बनाइये अपने रस्ते अपनी मंजिले स्वयं तैयार कीजिये ।

16.याद रखिये चलना तो अकेले ही पड़ता है ,सफलता पाने के लिए ।

16.दुनियाँ की भीड़ तो तब इकठ्ठी होती है ,जब रास्तें तैयार हो जाते है ।

17.सफलता के बाद तो हर कोई पहचान बढाना चाहता है ।

8.सकारात्मक सोच ही हमें आगे बड़ाने में सहायक होती है।

19 .नकारात्मक सोच अन्धकार से भरे बंद कमरे मे बैठे रहने के सिवा कुछ भी नहीं ।

20.उजियारा चाहिये तो अँधेरे कमरे में प्रकाश की व्यवस्था करनी पड़ेगी ।
21.यानि  नकारात्मक विचारों रुपी अन्धकार को दूर करने के लिये सकारात्मक विचार रुपी उजियारे की व्यवस्था करनी पड़ेगी ।

21.याद रखिये दूनियाँ में अन्धकार भी है ,और प्रकाश भी   ! तय हमें करना  है की हमें क्या चाहिए ।
22 . हमारी हार या जीत हमारे स्वयं के संकल्पों की शक्ति है।
23.इस धरती पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है ,जो अपने संकल्पों से अनहोने काम कर सकता है ।
24.कोई भी व्यक्ति शरीर से कमजोर या ताकतवर हो सकता है ।
25.परन्तु शुभ संकल्पों की शक्ति बहुत ही श्रेष्ठ और अद्वितय होती है ।

*अन्नदाता *

धरती पर इन्सानों का भागवान
मेरे देश का किसान अन्नदाता
तू अन्नदाता फिर भी तेरा क्यों
कमतर है ,सम्मान प्रकृति की
मार भी तुझे सहनी पड़ती है।
कभी तन को झुलसा देने वाली गर्मी ,
कहीं बाड़ का प्रकोप ,कभी सूखे का कहर
जो अन्नदाता है उसे ही अपने परिवार की जीविका
के लिए पीना पड़ता है ज़हर
और कभी सूली पर लटक
देता है प्राण ।।।
हाय मेरे देश का किसान
सर्वप्रथम किसानो दो को उच्चतम स्थान
उन जैसा नहीं कोई महान
मै दिल से करती हूँ तेरा सम्मान ।
ऐ किसान तू नहीं कोई साधारण इन्सान
तू अन्नदाता है ,इस सृष्टि का भगवान ।
तू तपति दोपहरी में खेतों मे काम करता है
सूखी रोटी ,तन पर एक वस्त्र अभावों में अक्सर
तेरा जीवन गुजरता है।
अपनी आजीविका चलाने को, अपने और अपने परिवार
को दो रोटी खिलाने को तू ,न जाने कितनों के पेट भरता है ऐ किसान।
ऐ मेरे देश के किसान ,तू महान है ।
तेरा क्या सम्मान करूँ ।तू स्वयं ही सम्माननीय ।
परमात्मा ने अपने ही कुछ दूतों को धरती पर किसान बनाकर भेजा होगा ।
नहीं तो यहाँ तो सबको अपने -अपने पेटों की पड़ी है ।
किसानों का सम्मान करो ,भारत एक कृषि प्रधान देश है अभिमान करो।
किसान नहीं होंगे तो ,भोजन कहाँ से लाओगे
क्या ? ईंट ,पत्थर ,रेता ,बजरी ,चबाओगे ।

**मै इंसान **

 ना जाने क्यों भटक जाता हूँ ,
 अच्छा खासा चल रहा होता हूँ," मैं"
 पर ना जाने क्या होता है ,
 ना जाने क्यों राहों के बीच मे ही उलझ जाता हूँ" मै"
जानता हूँ ,ये तो मेरी राह नहीं ,
मेरी मंजिल का रास्ता यहाँ से होकर तो नहीं जाता,
फिर भी न जाने क्यों ?आकर्षित हो जाता हूँ "मैं "
भटक जाता हूँ ,"मैं" हासिल कुछ भी नहीं होता
बस यूँ ही उलझ जाता हूँ "मै"फिर निराश -हताश
वापिस लौटकर अपनी राहों की और आता हूँ "मैं"
फिर आत्मा को चैन मिलता है ।
अपनी राह से कभी ना भटक जाने की सौगंध लेता हूँ।"मैं"
जीवन एक सुहाना सफ़र है ।
"मैं"मुसाफिर"अपने किरदार में सुंदर -सुंदर रंग भरना चाहता हूँ "मैं" बस हर दिल मैं प्यार भरना चाहता हूँ" मैं"
          बस जिन्दगी के नाटक मे अपना किरदार बखूबी निभाना चाहता हूँ "मै"

*तुम कभी मत टूटना *

 जब मैं निकला था , मौसम बड़ा सुहाना था,
 कुछ पल बहुत हँसे मुस्कराए ,सुंदर -सुंदर ख्वाब सजाये ,
 कुछ ख्वाब पूरे हुए ,कुछ अधूरे धूप तेज निकली ,गर्मी से मेरे होंठ सूखने लगे थे।
 ख्वाब अभी पूरे भी नहीं हुए  थे ,राहों में कंकड़ आ गये ,कंकड़ हटाये फिर चलना शुरू कर  दिया ,फिर बाधाओं पर बाधा मैं कुछ पल रुका ,फिर चल दिया ,मैं चल ही रहा था ,तेज आँधी आ गयी फिर तूफ़ान पर  
तूफ़ान मैं डरा सहमा , टूट सकता था ,और बिखर भी सकता था , पर मैं टिका रहा , माना की वक़्त मेरा साथ नहीं दे रहा था।  परन्तु मेरा हौंसला भी कम्बखत मेरा साथ नहीं छोड़ रहा था ।
थोड़ा वक़्त तो जरुर लगा ,मैं निराश भी हुआ ,परन्तु मेरे हौंसलों ने मरहम का काम किया तूफानों की चोटें अब भरने लगीं थी ।   सफ़र अब भी जारी था मेरा विश्वास मेरा हौंसला ही कम नहीं होने दे रहा था ।    
मौसम फिर से बदला ,सावन आया बादल बरसे खुशियों की बरसात हुई ।
मेरी आत्मशक्ति ने मेरी पीठ थपथपाई  ! क्योंकि मेरी आत्मा का विश्वास कभी टूटा नहीं ,उस  दृण  निश्चय विश्वास ने मुझे मेरी मंजिल तक पहूँचाया। जिन्दगी की दौड़ का एक फलसफा ही समझ आया उतार -चढाव तो आयेंगे ही धूप  से  पैर  भी झुलसेगें , आँधियों से सपने भी बिखरेंगें  पर  ऐ मानव  तुम ना बिखरना कभी ना टूटना  मंजिले तो मिल जायेंगी ,परन्तु अगर तुम बिखरे तो सब खत्म हो जाएगा ।।।।।।

**आँगन की कली**

आँगन की कली *

vlcsnap-2015-07-23-11h14m17s66जब मैं घर में बेटी बनकर जन्मी
सबके चेहरों पर हँसी थी ,
हँसी में भी ,पूरी ख़ुशी नहीं थी,
लक्षमी बनकर आयी है ,शब्दों से सम्मान मिला ।
माता – पिता के दिल का टुकड़ा ,
चिड़िया सी चहकती , तितली सी थिरकती
घर आँगन की शोभा बढ़ाती ।
ऊँची-ऊँची उड़ाने भरती
आसमाँ से ऊँचे हौंसले ,
सबको अपने रंग में रंगने की प्रेरणा लिए
माँ की लाड़ली बेटी ,भाई की प्यारी बहना ,पिता की राजकुमारी बन जाती ।
एक आँगन में पलती,   और किसी दूसरे आँगन की पालना करती ।
मेरे जीवन का बड़ा उद्देश्य ,एक नहीं दो-दो घरों की में कहलाती ।
कुछ तो देखा होगा मुझमे ,जो मुझे मिली ये बड़ी जिम्मेदारी।
सहनशीलता का अद्भुत गुण मुझे मिला है ,
अपने मायके में होकर परायी ,  मैं ससुराल को अपना घर बनाती ।
एक नहीं दो -दो घरों की मैं कहलाती ।
ममता ,स्नेह ,प्रेम ,समर्पण  सहनशीलता  आदि गुणों से मैं पालित पोषित                                                                                                     मैं एक बेटी ,मैं एक नारी ….
मेरी  परवरिश  लेती है , जिम्मेवारी , तभी तो धरती  पर सुसज्जित है ,
ज्ञान, साहस त्याग समर्पण प्रेम से फुलवारी    ,
ध्रुव , एकलव्या  गौतम ,कौटिल्य ,चाणक्य वीर शिवजी
वीरांगना “लक्षमी बाई ,” ममता त्याग की देवी  ”पन्ना धाई”,आदि जैसे हीरों के शौर्य से गर्वान्वित है भारत माँ की फुलवारी

* योग्यता को आरक्षण की लाठी की आव्य्शाकता नहीं *

  • बस अब और नहीं आरक्षण की आड़ में राजनीति अब और नहीं,आरक्षण की चाह ,और इतना भक्षण अपने स्वार्थ के लिये अन्य लोगों को नुकसान पहुँचना ।
    6h

  • बन्द करो बस बन्द करो,
    योग्यता को आरक्षण की लाठी की आव्य्शाकता नहीं *

  • आरक्षण का ये घिनौना खेल बन्द करो ,आरक्षण का की आड़ में अपनी मात्रभूमि में आतंक ना फैलायें आज देश
    में वो स्थिथि आ चुकी की है ,आरक्षण के हकदार वास्तव में आर्थिक रूप से कमजोर लोगे ही होने चाहिये , अगर किसी भी व्यक्ति में योग्यता है तो दुनियाँ की कोई ताकत आपको आगे बढने से नहीं रोक सकती ,योग्यता के आधार पर आगे बढिए ,आरक्षण की लाठी लेकर आगे बढना यानि स्वयं को कमजोर समझना मेरी देश वासियों से विनती है ,कृपया आरक्षण के नाम पर दँगा फसाद ना फैलाएँ स्वयं को काबिल और सक्षम बनाएँ अपनी क़ाबलियत व् योग्यता के बल पर आगे बढिए ,क्या बहते हुए पानी को कोई रोक पाया है क्या कभी रोशनी की हल्की सी किरण भी अगर जो हो तो वो झरोंकों से बाहर निकल ही जाती है ,योग्यता को आरक्षण की लाठी की कोई आवय्शकता नहीं योग्यता को अपाहिज न बनाइये 

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...