नववर्ष की सुन्दर बेला “


red_valentine_roses-wideनववर्ष के कोरे पन्ने ,
सुनहरी स्याही से ,भरें उज्जवल भविष्य के सूंदर सपने ।
सुस्वागतम्   सुस्वागतम्   नववर्ष की शुभ मंगल बेला ,
नयी भोर की नयी किरण है , हृदय में सबके नई उमंग है
नयी उमंग संग ,  नयी तरंग संग , दिल में हो पवित्र ज्ञान का संगम ।
नयी पीढ़ी की नव नूतन अभिलाषाएँ  नयी विचारधाराएँ…..
बढ़ने को उत्सुक प्रग्रति की राहों पर .. लिखने को उत्सुक उन्नति की नयी परिभाषायें
नहीं द्वेष हमें किसी से ,ह्रदय में निर्मल प्रेम की गंगाधारा
नववर्ष में खूब फले फूले खेत खलिहान ,सुख समृद्धि  करे सभी दिशाएँ
“विश्व् कौटुम्बकम , सत्यमेव जयते,   अहिंसा परमोधर्म,  सर्वे भवन्तु सुखिना
एकता में अनेकता . “जैसे कई महानात्माओं के वचन सत्य हो जाएँ ।
नववर्ष में एक प्रण है लेना, प्रस्पर प्रेम की खाद डालकर अपनत्व की फसल उगाओ,
द्वेष द्वन्द, की झाड़ियाँ काटो ,हृदय में प्रेम की ज्योत जलाओ।।।
मोती हैं अपने विभिन्न रंगों के , फिर भी हम एक माला के मोती
अब है अपनी जिम्मेदारी नहीं बिखरे माला के मोती हम सब हैं
एक दीप की ज्योति।।

धर्म और ज्ञान ,



दिव्य आलौकिक शक्ति जो इस सृष्टि को चला रही है , क्योंकि यह तो सत्य इस सृष्टि को चलाने वाली कोई अद्वित्य शक्ति है ,जिसे हम सांसाररिक लोग  अल्लाह ,परमात्मा ,ईसा मसीहा ,वाहे गुरु , भगवान इत्यादि ना जाने कितने नामों से पुकारते हैं , अपने इष्ट को याद करतें है।  उस शक्ति के  आगे हमारा कोई अस्तित्व नहीं तभी तो हम सांसरिक लोग उस दिव्य शक्ति को खुश करने की कोशिश में लगे रहते हैं …और कहतें है , तुम्हीं हो माता ,पिता तुम्हीं हो , तुम्हीं हो बन्धु ,सखा तुम्ही हो । दूसरी तरफ , परमात्मा के नाम पर धर्म की आड़ लेकर आतंक फैलाना बेगुनाहों मासूमों की हत्या करना,विनाश का कारण बनना , ” आतंकवादी “यह बतायें ,कि क्या कभी हमारे माता पिता यह चाहेंगे या कहेंगे, कि  जा बेटा धर्म की आड़ लेकर निर्दोष मासूमों की हत्या कर  आतंक फैला ?  नहीं कभी नहीं ना , कोई माता -पिता यह नहीं चाहता की उनकी औलादें गलत काम करें गलत राह पर चले । धर्म के नाम पर आतंक फ़ैलाने वाले लोगों ,आतंक फैलाकर स्वयं अपने धर्म का अपमान ना करो  । धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वालों को शायद अपने धर्म का सही ज्ञान ही नहीं मिला है , कोई भी धर्म हिंसा की शिक्षा नहीं देता , अहिंसा की ही शिक्षा देता है , प्रत्येक धर्म का मूल परस्पर प्रेम ,और भाईचारा ही है , अशिक्षा सही शिक्षा ना मिलना ,भी आतंकवाद का प्रमुख कारण हो सकता है , क्योंकि वास्तविक शिक्षा प्रगति का मार्ग दिखाती है ,  ”सभ्यता की सीढ़ियाँ चढ़ाती है ” “,विश्व कौटूम्बकं की बात सिखाती है ,”आतंक को शिक्षा से जोड़ना पड़ेगा क्योंकि आतंक फ़ैलाने वालों को सही ज्ञान सही मार्गदर्शन की  आवयश्कता है ,क्योंकि..   हिंसा को हिंसा से कुछ समय के लिए दबाया तो जा सकता है पर ख़त्म नहीं किया जा सकता , इसके लिए सही मार्गदर्शन की अति आवयश्कता है।

" दिव्य आलौकिक प्रकाश का उत्सव "

दीपवाली   प्रकाशोत्सव्  ,दीपों  का त्यौहार
भव्य  स्वागत की , तैयारीयाँ .......
परमात्मा के आगमन का हर्षोल्लास ,
वह परमात्मा जो सवयम् ही है ,दिव्य ,अलौकिक प्रकाश .......
चलो इस बार दीपावली कुछ अलग ढंग से मानते हैं ।
घर आँगन  ,की स्वच्छ्ता के संग ,
दिलों के वैर ,को भी मिटाते हैं ।
बिन बात के शिकवे ,शिकायतें सब भूल जातें हैं ।
दिलों में परस्पर प्रेम का दीपक जलाते हैं ,भाईचारा बढाते हैं ,
एकता में अनेकता की जोत जलाते  हैं ।
किसी गरीब के ,घर आँगन को रोशन कर आतें हैं ।
कुछ मिठाइयाँ भूखे बच्चों को खिला आते हैं 
कोई भूख ना रहे ,किसी के घर में भोजन की व्यवस्था कर आते है
 दीपाली त्यौहार है ,सौहार्द का प्रभू के स्वागत का ,
पठाखों के  धुँए से वातावरण को दूषित करने से बचातें हैं । 

"अपनत्व के बीज ,प्रेम प्यार की फसल "


अपनत्व के बीज ,प्रेम प्यार की फसल “

दुनियाँ की भीड़ संग चल रहा था ,
भीड़ अच्छी भी लग रही थी ,
क्योंकि दुनियाँ की भीड़ मुझे हर पल कई नए  पाठ पड़ा रही थी,
किरदार बदल -बदल कर ,दुनियाँ की रफ़्तार संग चलना सिखा रही थी ।
माना की , मैं भी सब जैसा ही था ,
नहीं था ,मुझमे कुछ विशिष्ट ,
यूँ तो चाह थी , मेरी दूनियाँ संग चलूँ , दूनियाँके रंग में रंगूँ ,
फिर भी , मैं दुनियाँ की भीड़ में कुछ अलग दिखूँ
मेरे इस विचार ने मुझमे इंसानियत के दीपक को जला दिया
असभ्यता,  अभद्रता  के काँटों को हटाकर
शुभ और सभ्य विचारों का बगीचा सजा दिया ,
मेरे विचारों की ज़िद्द ने ,मुझे सलीखे से चलना सिखा दिया
जमाने की भीड़ में रहकर , मुझे भीड़ में अलग दिखना सिखा दिया ।
बस अब ,अपनत्व की बीज बोता हूँ ,  नफरत की झाडियाँ काटता हूँ

प्रेम ,प्यार की ,फसल उगाता हूँ।।।।।।।।।।।




"माँ आदि शक्ति "

भारत देश एक ऐसा देश है, जहाँ  दिव्यशक्ति जो इस सृष्टि का रचियता है,विभिन्न अवतारों रूपों में आराधना की जाती है । परमात्मा के विभिन्न अवतारों के कोई ना कोई कारण अवश्य है ,जब -जब  भक्त परमात्मा को पुकारतें हैं ,धरती पर पाप और अत्याचार अत्यधिक हो जाता तब परमात्मा अवतार लेते हैं और धरती को पाप मुक्त करतें है।  हमारे यहाँ जगदम्बा के नवरात्रे की भी बड़ी महिमा है  ,जगह -जगह जय माता दी ,के जयकारे ,माता के जागरण चौकी ,माता की भेंटों से गूंजते मंदिर ........पवित्र वातावरण
सजे धजे मंदिर मातारानी का अद्भुत श्रृंगार लाल चुनरिया लाल चोला, लाल चूड़ियाँ ,निहार माँ के लाल होते है ,निहाल ।
माँ का इतना सूंदर भव्य स्वागत ये हमारा देश भारत ही है ,जहाँ माँ का स्थान सबसे ऊँचा  है ,फिर चाहे वो धरती पर  जन्म देने वाली माँ हो ,या जगत जननी , क्यों न हो वो एक माँ ही तो है ,जो दृश्य या अदृशय रूप से अपनी संतानो का भला  ही करती है ।
कहतें हैं ,धरती पर जब पाप और अत्याचार ने अपनी सीमायें तोड़ दी थी ,साधू सज्जन लोग अत्यचार का शिकार होने लगे  थे,चारों और अधर्म ही अधर्म होने लगता था,तब शक्ति ने  अधर्म का नाश करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए धरती पर अवतार लिया था, पापियों और राक्षसों का अंत किया,और फिर से धर्म  की स्थापना की ,राक्षसों का अंत करने के लिए माँ को कई  रूप धारण करने पढे ,माँ गौरी ,माँ दुर्गा , अम्बे ,माँ काली आदि माँ आदिशक्ति कई नामो जानी जाती है ।
  माँ  अन्नपूंर्णा बन अपनी संतानों का पालन पोषण करती है , तो कभीमाँ  सरस्वती का रूप धारण कर अपनी संतानों में ज्ञान के बीज बोती है, तो वहीँ लक्ष्मी बन जगत को सुख समृद्धि प्रदान करती है।
माँ हमेशा से पूजनीय है , नवरात्रों में देवी की पूजा का विशेष महत्व है , नवरात्रों  में गुजरात में गरबा का विशेष महत्त्व है । कोल्कता में  काली माँ की पूजा ,बंगाली समुदाय द्वारा काली पूजा  बड़े ही पाराम्परिक ढंग से व् श्रद्धा से की जाती है ।
हमें जन्म देने वाली.माँ को भी हमें उतना ही सम्मान देना चाहिए ,क्योंकि धरती पर सर्वप्रथम माँ ने ही हमें समर्थ बनाया ।

"शक्ति के साथ भक्ति भी के रंग भी दिखे मोदी जी में"

 शक्ति के साथ भक्ति भी है मोदी जी में
प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी की यह पहली यात्रा थी ,ऋषिकेश में ।
मोदी जी का ऋषिकेश के आई .डी.पी.एल ग्राउंड में भव्य स्वागत किया गया ।चौबीस घंटे में इतनी तैयारी करना अद्भुत कहा ,मोदी जी ने उसके लिए हृदय से अभिनन्दन किया।
मोदी जी की यह ऋषिकेश यात्रा निजी थी ,वह ऋषिकेश अपने दीक्षा गुरु  दयानंद सरस्वती जी से मिलने पहुँचे,
गुरु जी का स्वास्थ्य कुछ समय से अस्वस्थ चल रहा है ,
नरेंद्र मोदीजी ने ऋषिकेश में विशाल जन सभा को सम्भोदित करते हुए कहा ,की अभी तो बहुत कुछ करना हैः हमारी बेटियाँ पढ़नी चाहियें बेटियाँ पढेगी तभी देश तरक्की करेगा ।  बैंको का राष्ट्रीयकरण किया गया , बैंको के पैसे पर पहला हक़ गरीबों का है , मेरी माँ बहनो का है ।   प्रधानमंत्री जन संघ योजना में  सोलह करोड़ एकाउंट खुले  ।   एक हज़ार दिवस में अठ राह हज़ार  गावों में बिजली देनी है ।
,हमारे जवानो को वन रैंक वन पेंशन जवानों का सम्मान बड़ा रही है ।मोदी जी ने कहा वह देवभूमि के विकास में कोई कसर नहीं छोड़गे ।
मोदी जी ने अपने दीक्षांक गुरु दयानंद सरस्वती को तीन वचन दिए ,
पहला गरीब को छत ,दूसरा युवाओं को रोजगार और हर घर में बिजली ।
सबको मिलकर चलना है, विफलता से ही सफलता का रास्ता होकर निकलता है

जन-जन के प्यारे श्री कृष्ण

कहते है ना जब जब धर्म की हानि होती है पाप और अत्याचार अत्यधिक बढ़ जाता है ,तब -तबध अधर्म का  अंत करने के लिए ,परमात्मा स्वयं धरा पर जनम लेते हैं ।
 हम लोग भाद्रपद में कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन श्री कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में ,बड़े धूम धाम से मानते हैं ,जगह -जगह मंदिर सजाये जातें हैं ,श्री कृष्ण की लीलाओं की सूंदर -सूंदर झांकियाँ सजायी जाती हैं ,हम श्री कृष्ण की लीलाओं का स्मरण करते हैं ,प्रेरणा लेते है । आप लोग क्या सोचतें हैं की भगवान धरती पर आये और पापियो को मारा।  ..... ।नहीं भगवान् को भी एक साधारण मानव की तरह इस धरती पर जन्म लेना पड़ता है ,भगवान् राम को भी अपनी जीवन काल में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था ।
चाहते तो कृष्ण धरती पर आते कंस का वध करते और धरती को पाप मुक्त करा देते ,नहीं पर ये इतना आसान नहीं था ,भगवान भी जब धरती पर जन्म लेते हैं ,तो उन्हें भी साधारण मानव की तरह जन्म लेना पड़ता है ,मानव जीवन की कई यातनाएँ उन्हें भी साहनी पड़ती हैं ,कृष्ण का जन्म कारावास में हुआ ,जन्म देने वाली माँ देवकी ,नंदगाँव में माँ यशोदा की ममता की छांव मिली , बारह वर्ष ग्वाले का जीवन बिताया ,माखन चोर ,के नाम से.जाने गए अरे वो तो भगवान थे ,उन्हें माखन चुराने की क्या आव्यशकता थी  । प्रेम वश् गायोँ के ग्वाले गोपियों के गोपाल कहलाये  श्री कृष्ण की लीलाओं में बस इतना फर्क था की उनकी लीलाओं में कोई कपट नहीं था स्वार्थ नहीं था ,उनका प्रत्येक प्राणी.के प्रति समभाव था । चाहते तो  कृष्ण अपने सुदर्शन चक्र से एक ही बार में पापी कंस का वध कर देते ,नहीं पर श्री कृष्ण ने ऐसा नहीं किया,क्योंकि उन्होंने आने वाले समाज को प्रेरणा और सीख दी की धरती पर रहते हुए एक साधारण मानव  भी अपने शुभ कर्मो के आत्मबल  की शक्ति की युक्ति से चाहे जो भी वो कर सकता है ,चाहे तो वह धरती को स्वर्ग बना सकता है ,चाहे नरक ,परमात्मा ने ये धरती मानवों के लिए बनाई है मानव चाहे अपने कर्मो द्वारा धरती को स्वर्ग बना सकता है या .....जैसा चाहे ......श्री कृष्ण जन-जन के प्यारे उनका माखन चुराना भी सबको प्रिय लगता था ,क्योंकि वह निष्कपट थे ,क्योंकि उन्होंने सिर्फ प्रेम का ही सन्देश दिया चाहे वह ग्वालों केरूप में गायों के प्रति था,या फिर गोपियों ,सोलह हज़ार रानियाँ , श्री कृष्ण के सुरक्षा  कवच में सब  सुरक्षित थे ।

"शिक्षक का स्थान सबसे ऊँचा"

आदरणीय, पूजनीय ,
               सर्वप्रथम ,  शिक्षक का स्थान  समाज में सबसे ऊँचा
               शिक्षक समाज का पथ प्रदर्शक ,रीढ़ की हड्डी
               शिक्षक समाज सुधारक ,शिक्षक मानो समाज.की नीव
               शिक्षक भेद भाव से उपर उठकर सबको सामान शिक्षा देता है ।
               शिक्षक की प्रेरक कहानियाँ ,प्रसंग कहावते बन विद्यार्थियों के लिए
               प्रेरणा स्रोत ,अज्ञान का अन्धकार दूर कर ,ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं,
                तब समाज प्रगर्ति की सीढ़ियाँ चढ़ उन्नति के शिखर पर पहुंचता है,
             
              जब प्रकाश की किरणे चहुँ और फैलती हैँ ,
              तब समाज का उद्धार होता है ,
              बिन शिक्षक सब कुछ निर्रथक, भरष्ट ,निर्जीव ,पशु सामान ।
             
              शिक्षक की भूमिका सर्वश्रेष्ठ ,सर्वोत्तम ,
              नव ,नूतन ,नवीन निर्माता सुव्यवस्तिथ, सुसंस्कृत ,समाज संस्थापक,
              बाल्यकाल में मात ,पिता शिक्षक,  शिक्षक बिना सब निरर्थक सब व्यर्थ
           
              शिक्षक नए -नए अंकुरों में शुभ संस्कारों ,शिष्टाचार व् तकनीकी ज्ञान
               की खाद डालकर सुसंस्कृत सभ्य समाज की स्थापना करता है ।

अमर प्रेम की पवित्र डोर

 रक्षा बंधन का पर्व ,
      भाई बहन का गर्व ,
 निश्छल पवित्र प्रेम का अमर रिश्ता
बहन भाई की कलाई में राखी.बांधते हुए कहती है, 
भाई ये जो राखी है ,ये कोई साधारण सूत्र नही ,
इस राखी में मैंने स्वच्छ पवित्र प्रेम के मोती पिरोये हैं ,
सुनहरी चमकीली इस रेशम की डोर में ,
भैया तुम्हारे  उज्जवल भविष्य की मंगल कामनाएं पिरोयी है ।
रोली ,चावल ,मीठा ,लड़कपन की वो शरारतें ,
हँसते खेलते बीतती थी दिन और रातें 
सबसे प्यारा सबसे मीठा तेरा मेरा रिश्ता 
भाई बहन के प्रेम का अमर रिश्ता कुछ खट्टा कुछ मीठा ,
सबसे अनमोल मेरा भैय्या,           
कभी तुम बन जाते हो मेरे सखा , 
और कभी बड़े  भैय्या ,  भैय्या मै जानती हूँ ,तुम बनते हो अनजान 
पर मेरे सुखी जीवन की हर पल करते हो प्रार्थना।
 भैय्या मै न चाहूँ ,तुम तो मुझको दो सोना ,चांदी ,और रुपया 
दिन रात तरक्की करे मेरा भैय्या ,
ऊँचाइयों के शिखर को छुए मेरा भैय्या 
रक्षा बंधन  की सुनहरी चमकीली राख़ियाँ 
सूरज ,चाँद सितारे भी मानो उतारें है आरतियाँ 
काश कभी हम भी किसी के भाई बने,    और कोई बहन हमें भी बांधे राखी 
 थोड़ा इतरा कर हम भी दिखाएँ कलाई देखो इन हाथों में भी है राखी

सत्यम शिवम् सुंदरम्

वतन की मिट्टी से जब शहीदों के शौर्य की खुशबु आती है ,
            आँख नाम हो जाती है ,जुबाँ गुनगुनाती है ,
वन्दे मातरम् ,वंदे मातरम्   ,सारे जाहाँ से अच्छा दिन्दुस्तान हमारा ,
माँ सी ममता मिलती है ,रोम रोम प्रफुल्लित हो जाता
            जब  भारत  को भारत माँ  कह के बुलाता हूँ
भिभिन्न परम्परा में रंगा हुआ हूँ ,पर जब जब देश पर विपत्ति आती
                 एक रंग में रंग जाता हूँ ,
हिंदुत्व की पहचान ,हिंदी हमारी मात्र भाषा ,हिंदी में जो बिंदी है,
वह भारत माता के माथे का श्रृंगार,बिंदी की परम्परा वाला मेरे देश की
विशव में है विशिष्ट पहचान ,प्रगर्ति की सीढ़ियाँ चढ़ता
           उन्नति के शिखर को छूता, मेरा भारत महान
भारत माँ की छाती चौड़ी हो जाती ,जब शून्य डिग्री पर
खड़े सिपाही बन देश का रक्षा प्रहरी भारत माँ की खातिर
मर मिटने को अपने प्राणों की बलि चढ़ाये
नाज है, मुझे सवयं पर जो मैंने भारत की धरती पर जन्म लिया
जीवन मेरा सफल  होगा ,हिदुस्तान में फिर से राम राज्य.होगा
हिदुस्तान फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगा।
इतना पावन है ,देश मेरा यहां नदियों में अमृत.बहता है ,
इंसान तो क्या पत्थर भी पूजा जाता है ।

रंग मंच

कारण  तो बहुत  हैं , शिकवे  शिकायतें करने  के 
 मगर  जब  से हमने हर  मौसम  में लुत्फ़ लेना सीख  लिया ,
जिंदगी के सब शिकवे बेकार हो गए ।
ज़िन्दगी  तो  बस एक नाटक  है , दुनियाँ के  रंगमंच में हमें अपने किरदार को बखूबी निभाना है ।
फिर क्यों रो _रो कर दुखी होकर गुजारें जिंदगी 
जीवन के हर किरदार  का  अपना एक अलग अंदाज़ है क्यों अपना-अपना किदार बखूबी निभा लें हम 
इस नाटक की एक विशेष बात है , क़ि हमने जो परमात्मा से मस्तिक्ष की निधि  पायी है ,
बस उस निधि का उपयोग  ,करने की जो छूट है ,उससे  हमें खुद के रास्ते बनाने होते हैं 
हमारी समझ हमारी राहें निशिचित करती हैं ,
परिश्रम ,निष्ठा, और निस्वार्थ कर्मों का मिश्रण जब होता है,
तब मानव  अपने किरदार में सूंदर रंग भारत है,और तरक्की की सीढियाँ चढ़ता है ,
भाग्य  को कोसने वाले अभागे होते हैं ,
वह अपने किदार में शुभ  कर्मों का पवित्र रंग तो भरते नहीं ,
फिर भाग्य को कोसते हैं , और परमात्मा को दोषी ठहराते हैं 

      ठंडी -ठंडी छाँव  "माँ"

फरिश्तों के जहां से , वातसल्य कि सुनहरी चुनरियाँ ओढे ,
सुन्दर, सजीली ,मीठी ,रसीली ,
दिव्य आलौकिक प्रेम से प्रका शित ममता की देवी  'माँ '
परस्पर प्रेम ज्ञान के दीपक जला ती रहती। 
ममत्व की सुगन्ध कि निर्मल प्रवाह धारा 
 प्रेम के सुन्दर रंगो से दुनियाँ सजाती रहती 
समर्पित पूर्ण रूपेण समर्पित '

  ममता की ठंडी -ठंडी छाँव देने को ,
पवित्र गंगा की  धारा बन ,अवगुण सारे बहा ले जाती। 
निरंतर बहती रहती ,बच्चों कि जिंदग़ी सवांरने मे स्वयँ को भूल 
जीवन बिता देती ,          
 दर्द मे दवा ,बन  मुसकराती  रहती। 
बिन कहे दिल कि कर जाती 
जाने उसे कहाँ से आवाज़ आती ,
सभी बड़े -बड़े पदों पर बैठे जनों कि जननीं है, जननीं कि कुर्बानी। 
पर उसके दिल कि किसी ने नहीं जानी ,
वही  है ,दुर्गा , वही है लक्ष्मी ,सरस्वतीं ,काली  
दुनियाँ  सारी उसी से ,
यही तो है ,  दिव्य ,अलौकिक  जननीं कि निशानी 
बड़ी विचित्र ,है'' माँ ''  के दिल कि कहानी।

  ''   परियों वाली ऑन्टी ''

उस नन्हें बच्चे कि रोने कि आवाज़ें मानो कानोँ को चीर रही  थीं। दिल में एक गहरी चोट कर रही थी। बहुत सोचा दिल नहीं माना .  मैंने आख़िर दरवाजा खोलकर देख ही  लिया।
देखा तो दिल पहले से भी  अधिक दुः खी हो गया ,पांच साल कि नन्ही बच्ची दो साल के अपने छोटे भाई को लिये घर के बाहर बैठे थी और  अपने भाई  को सँभाल रही  थीं।  कई तरह के यत्न कर रही थी कि उसका भाई किसी तरह रोंना  बन्द कर दे। पर शायद वो भूखा था।  वो बहिन जो सवयं की देख -रेख भी ढंग से नही  कर सकती थी  वह  बहिन अपने भाई  को बड़े  यत्न से सँभाल रही थीं बहिन का फर्ज निभा रही थी।
बहुत पीड़ा हो रही थी उन बच्चों को देखकर ,शायद पेट कि क्षुधा को शान्त करने के लिये वह लड़की अपने भाई  को लेकर कभी किसी के घर के आगे बैठती कभी किसी के -----शायद कहीं से कुछ को खाने को मिल जाएं आखिर मेरे मन कि ममता ने मुझे धिक्करा मै जल्दि  से उन बच्चोँ के खा ने के लिये कुछ ले आई , लड़की ने तो झट से रोटी और सब्जी खा ली ,  परंतू भाई अभी भी  रो रहा था ,वह छोटा था ,मैने उसके भाई के लिये कुछ बिस्कीट खाने को दिये फ़िर जाकर वह बच्चा शान्त हुआ।
मेरे पूछने पर कि वो कहाँ रहती है उसके माँ -बाप कहाँ  हैं ,वह बच्ची बोळी वो पडोस मे एक नई बिल्डिंग बन रही है न मेरी मा तो वहाँ मज़दूरी करती  है,  थक जाती है ना इस लिये भाई को ढूध नहि पिला पाती ---
मै  हैरान थी कि इतनी छोटी सी उम्र मे कितना समझदार बना दिया है वक़्त ने इस बच्ची को , माइन पूछा पिता जी कहाँ है तो बोली पिताजी तो घर पर ही रहते हैं  माँ और हम जब शाम को घर जाते हैं तो मा ख़ाना बनती है पिताज़ी  झगड़ा करते रहते हैं मेरे पिताजी हमारे साथ खेलते भी नहीं ,जब ख़ाना बन जाता है तब हम सब खान खाते हैँ और ,फ़िर पितजी मा से झगड़ा करती हैं कुछ पैसे  लेते है ,फ़िर कही  बाहर  चले जाते हैँ ,फ़िर थोड़ी देर बाद आते हैं और ठीक से चल भी  नही  पा रहे होते हैं गिरते -गिरते लुढ़कते -लुढ़कते घर पहुँचते हैं फ़िर खटिया पर गिरते हैं और सो जाते हैं।
वह लड़की बड़े दर्द  भरी आवा ज मे बॉली ऑन्टी ह्मारे पितजी ऐसे क्योँ है सबके तो ऐसे नहीं होते ,ऑन्टी मेरा भी स्कूल जाने क मन करता है पर मै क्या करूँ ,,पता नही  हम स्कुल जा भी  पायेंगे या नही ,मैने ने उस बचची के सिर पर हाथ फेरते हुए  कहा जरूर कल से हि तुम स्कुल जाऊगी  तुम्हारे पिताजी भी ठीक हो जाएंगे हम उनको दवा देंगे। ----वो बच्ची मेरे  गले लग गयी  ,खुश होते हुए बोली सच ऑन्टी आप तो परियों वाली आन्टी हो।
मेरे पास शब्द नही थे --बच्ची के गाल पर फेरते हुए मानो मैने उसके दर्द को दूं  र  करने की शपथ ले ली थी कि आज से ये बच्ची हमेशा  मुस्कराती  रहेगी। पड़ लिखकर  आगे बढ़ेगी ---------

जिस  दिल में मोहब्ब्बत होती है  2

हंसना  ,मुस्कराना , इतराना , इठलाना ,
 यही तो  मोहब्बत  करने  वालों की पहचान  है ,
     मोहब्बत  में इंसान  सबसे अमीर हो। जाता है।
जेब  में ख़ाक। नहीं , दिल। में मोहब्बत। की नियामतें
   मोहब्बत में  इंसान  के पर  निकल  आते हैं ,

    हौंसलों  की  उड़ान  लम्बी  और पकड़  मजबूत  हो जाती है
 
   अपनी धुन में  मस्त  आवारा पंछी  ,
        दिल  में चुभन  चेहरे पर  मुस्कान ,
          बड़ा  देती  है,  चेहरे  की रौनके  ,

दिल को  किसी से बैर  नहीं , लाख  करे कोई  फरेब सही
या  यूं  कहिये ,  मोहब्बत अपना स्वभाव नहीं  छोड़ती।

दिल  की  खूबसूरत अदायें सब कुछ सवाँर देती  हैं ,

खुशमिजाजी   मोहब्बत  करने वालों का स्वभाव बन बन जाता है ।

''हिंदी  मेरी मातृभाषा माँ तुल्य पूजनीय ''       

  जिस भाषा को बोलकर  मैंने अपने भावों को व्यक्त किया ,जिस भाषा को बोलकर मुझे मेरी पहचान मिली ,मुझे हिंदुस्तानी होने का गौरव प्राप्त हुआ   ,                            उस माँ तुल्य हिंदी भाषा को मेरा शत -शत नमन।

भाषा विहीन मनुष्य अधूरा है।
 भाषा ही वह साधन है जिसने सम्पूर्ण विशव के जनसम्पर्क को जोड़ रखा है।  जब शिशु इस धरती पर जन्म लेता है ,तो उसे एक ही  भाषा आती है वह है,  भावों की भाषा ,परन्तु भावों की भाषा का क्षेत्र सिमित है।
मेरी मातृभाषा हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ठ है।  संस्कृत से जन्मी देवनागरी लिपि में वर्णित हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ट है।  अपनी मातृभाषा का प्रयोग  करते समय मुझे अपने  भारतीय होने का गर्व होता है।  मातृभाषा बोलते हुए मुझे अपने देश के प्रति मातृत्व के भाव प्रकट होते हैं।   मेरी मातृभाषा हिंदी मुझे मेरे देश की मिट्टी  की  सोंधी -सोंधी महक देती रहती हैं  ,और भारतमाता    माँ  सी  ममता।    
आज का मानव स्वयं को  आधुनिक कहलाने की होड़ में  'टाट में पैबंद ' की तरह अंग्रेजी के साधारण  शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को  आधुनिक समझता  है।
अरे जो नहीं कर पाया अपनी मातृ भाषा का सम्मान उसका स्वयं का सम्मान भी अधूरा है।  किसी भी भाषा का ज्ञान होना अनुचित नहीं   अंग्रेजी  अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। इसका ज्ञान होना अनुचित नहीं।
परन्तु माँ तुल्य अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने में स्वयं में हीनता का भाव होना स्व्यम का अपमान है।
मातृभाषा का सम्मान करने में स्वयं को  गौरवान्वित  महसूस करें।   मातृभाषा का सम्मान  माँ का सम्मान है.
हिंदी भाषा के कई महान ग्रन्थ सहित्य ,उपनिषद ' रामायण ' भगवद्गीता ' इत्यादि महान ग्रन्थ युगों -युगों से  विश्वस्तरीय  ज्ञान की  निधियों के रूप में आज भी सम्पूर्ण विश्व का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं व् अपना लोहा मनवा रहे है।
भाषा स्वयमेव ज्ञान की देवी सरस्वती जी का रूप हैं।   भाषा ने ही ज्ञान  की धरा को आज तक जीवित रखे हुए हैं
मेरी मातृभाषा हिंदी  को मेरा  शत -शत  नमन  आज अपनी भाषा हिंदी के माध्यम से मैं अपनी बात लिखकर आप तक पहुंचा रही हूँ।   

बुलंदी की ऊँचाइयाँ  

बुलन्दी की ऊँचाइयाँ कभी भी अकेले आसमान नहीं छू पाती ,परस्पर प्रेम ,मैत्री ,सद्भावना  विश्व्कुटुम्ब्क की भावना  ही तरक्की की  सीढ़ियां हैं।
धार्मिक संगठन किसी भी देश -प्रदेश की भगौलिक प्राकृतिक परिस्थियों के अनुरूप नियमों का पालन करते हुए अनुशासन में रहते हुए संगठन में रहने के गुण भी सिखाता है।
अपनी विषेश पहचान बनाने के लिये या यूं कहिए की अपने रीती -रिवाज़ों को अपनी परम्पराओं व् संस्कृति को जीवित रखने के लिए किसी भी धर्म जाती या  संगठन या समूह का निर्माण प्रारम्भ हुआ होगा इसमें कोई दो राय नहीं हैँ,ना ही यह अनुचित है। परन्तु कोई भी धर्म या परम्परा जब जड़ हो जाती है ,भले बुरे के ज्ञान के अभाव में आँखों में पट्टी बाँध सिर्फ उन परम्पराओं का निर्वाह किया जाता है ,तो वह निरर्थक हो जाती है।
समय।,काल ,वातावरण के अनुरूप परम्पराओं में परिवर्तन होते रहना चाहिए परिवर्तन जो प्रगर्ति का सूचक हो। शायद ही कोई धर्म किसी का अहित करने को कहता हो ,
कोई भी इंसान जब जन्म लेता है ,एक सा जन्मता है सबकी रक्तवाहिनियों में बहने वाले रक्त का रंग भी एक ही होता है' लाल '. हाँ किसी भी क्षेत्र की जलवायु वहां के रहन -सहन के विभिन्न तौर -तरीकों की व्भिन्नता के कारण इंसान की चमड़ी के रंग में परिवर्तन अवशय होता है। अतः धर्म  जाती के नाम पर लड़ना आतंक फैलाना स्वार्थ सिद्ध करना कोई भी धर्म  या धर्म  ग्रन्थ धर्म  के नाम पर लडना नहीं सीखता।धर्म की आड़ लेकर कई संगठन विभिन्न भ्रांतियाँ फैलाना स्वार्थ सिद्धि के लिए आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं ,आतंकवाद से किसी का भला होने वाला नहीं है, सिर्फ विनाश ही विनाश---------
एक मजबूत किले की दीवार के लिए ईंठ ,पत्थर ,सीमेंट इत्यादि सभी को एक होकर एक रंग में रंगना पढ़ता है। तभी ऐतिहासिक इमारतें बनती हैं  इतिहास भी इस बात का ग्वाह है।
अतः मेरा देश महान मेरा भारत महान तो सभी कहते हैं ,देश महान तभी बनेगा जब हम सब धर्म  जातिवाद व् स्वार्थवाद से ऊपर उठकर प्रेम सद्भावना के रंग में रंग कर देश की उन्नति के लिए अग्रसर होंगे। अतः प्रत्येक मनुष्य जाती का धर्म परस्पर प्रेम ही होना चाहिये।

मोहब्बत -  अनकहें शब्दों की भाषा है !!!!!!

मोहब्बत सुरों की सुमधुर झंकार है, 
इसी से रचा सुन्दर संसार है ,
अनकहें शब्दों की मीठी परिभाषा है , 
मोहब्बत नज़रों  की भाषा है।  

 पवित्र रिश्ता 
दिल में तूफ़ान , चेहरे पर मुस्कान 
जहर पी कर भी मुस्कराना ही तो 
मोहब्बत करने वालो का हुनर है। 
मोहब्बत आती नहीं सभी को रास , 
सिर्फ पा लेना ही नहीं 
 सबकुछ ख़ाक हो जाना भी 
 मोहब्बत को करता अमर है। 

पुष्पों में सुगन्ध  की तरह, 
समीर में लीन हो जाना ,
दिए में बाती संग, 
तेल का स्वाहा  हो जाना ही तो है  मोहब्बत।  

दिलो से खेलने का शौंक न पालो मेरे युवा साथियों ,
मोहब्बत के सुकून में तूफानों का अनदेखा पैगाम भी है, 
तूफानों की चोटों का नासूर बन जाना भी आम है, 
यह एक गहरा समुन्दर  है ,
समुन्दर  में रत्नों  का भंडार है, 
समुन्दर में सैलाब का आना  भी संभव है। 
फिर भी पंछियों की तरह ऊंची उड़ान भर- भर  कर ऊँचे-ऊँचें   सपने देखना 
हँसना , मुस्कराना ,इतराना, इठलाना, यही  तो मोहब्बत करने  वालों की पहचान है। 

 फिल्मी दुनिया 

 फिल्म बनाते समय फिल्मकार का  मुख्य उद्द्शेय अधिक से अधिक पैसा कमाना होता है। 
फिल्मकार नए -नए अनुभव आजमाते हैं ,जो दर्शकों को पसंद आए और उनके दिलों दिमाग पर छा जाएं। 
कुछ काल्पनिक कुछ सत्य घटनाओं पर आधारित कथानक के माधय्म से फिल्म में संगीत, डायलॉग  आकर्षक दृश्यों का मिर्च मसाला मिलकर फिल्म तैयार की जाती है। फिल्म के अभिनेता अभनेत्री अगर अपने अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन करने में सफल हो जाते हैं , तो फिल्म तो दौड़ पड़ती है।
 किसी भी फिल्म में नयापन  परोसना महत्वपूर्ण पासा होता है।, क्योंकि  वही  नयापन फिल्म  को आगे  बढ़ाने वाली  सीढ़ी  का काम करता है,ओर जहां तक सवाल है की किसी फिल्म की कहानी समाज में जागरूकता लाने का काम करती है  तो , इसका  श्रेय   फिल्म के  कथानक  को ही  जाता  है। 

कोई भी  फिल्मकार शायद ही समाज को  जाकरूक करने के लिए फिल्म बनाता  है। निर्देशक का मुख्य उद्द्शेय तो अधिक से अधिक पैसा वसूल करना होता है।  किसी भी फिल्म की सफलता का श्रेय  कहानी लिखने वाले 
दृश्यांकर्ता  संगीतकार  व् उस फिल्म में काम करने वाले  कलाकारों को ही जाता है ,उस समय कोई भी दर्शक यह नहीं सोचता की फिल्म में काम करने वाले सिर्फ पैसा कमाने के लिए अभिनय कर रहे हैं। 

किसी भी  फिल्म   को  देखने  का  दर्शकों  का  मुख्य  उद्द्शेय मनोरंजन ही होता है मनोरंजन  जो मन को अच्छा लगे ,फिल्म में काम करने वाले अभिनेता या अभनेत्री का अभिनय अगर दिल में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहता है तो इसका श्रेय कलाकारों को ही जाता है। यूं तो हमारे बॉलीवुड में अनगिनत फिल्मे बनती हैं परन्तु कुछ एक ही  गिनती की सभ्य और अच्छी प्रेरणास्पद भावात्मक फिल्में बनती है। 
यूं तो मै  आमिरखान की कोई बहुत बड़ी फैन नहीं हूँ ,,फिर भी कुछ एक फिल्में   '' तारें जमीन पर '' थ्री इडियट्स '' अपने आप में   श्रेष्ठ  साबित हुईं  हैँ।      

        देखो हंस रहे हैंखेत खलिहान     

     
देखो हंस रहे हैं खेत खलिहान ,
                       मीठी मधुर हवा संग कर रहे हों मधुर गान।
                                       आओ झूमे नाचे गाए आई है बहार।
   

पीली -पीली सरसों से हुआ है ,
 धरती का श्रृंगार।
सुनहरे रंगो की छटा चारोँ ओर।

                                        दिनकर की किरणों से चमके ,
                                             चाँदनी सा जलाशयों का जल
                                               सतरंगी रंगों की छठा ,मंद -मंद
                                                  हवाओं से लहराती पौधों की कतार।
               
बसंत ऋतु की आयी है बहार।,
मन प्रफुल्लित सुनहरे सपनो को सच करने
का संदेश निरन्तर परिश्रम का मिला है परिणाम
प्रग्रति और उन्नति का है ,आशीर्वाद,
जो  धरती ने कर लिया है केसरिया सुनहरा श्रृंगार,
आई है, बसंत ऋतु  की   बहार।                               

 पी के फिल्म की कहानी मेरी जुबानी!!!!

           
पी,के, फिल्म   सादगी से फिल्माई गयी , मनोरंजन से भर -पूर् फिल्म है।  पी ,के फिल्म की कहानी को बहुत ही सुन्दर ढंग से दर्शाया गया है।     आमिर खान एक अच्छे अदाकार हैं ,उनकी अदाकारी का जादू इस फिल्म में भी भरपूर दिखाई देता है।   इस फिल्म का प्रत्येक दृश्य मन  को प्रफुल्लित करने में सक्षम है।  मनोरंजन, व्यंग तथा  एक विशिष्ट विषय पर संदेश देती, यह फिल्म ,की  भगवान कहाँ  है/ इस फिल्म का नायक भगवान को भगवान का घर कहे जाने वाले विभिन्न धर्मस्थलों  मंदिर ,मस्जिद ,चर्च इत्यादि स्थलों पर खोजता है ,पर उसे भगवान नहीं  मिलते। नायक क्योंकि दुसरे ग्रह से आया हुआ प्राणी है उसे अपने घर जाना है , वह धर्म के ठेकेदार कहे जाने वाले साधू -संतों के पास भी जाता है जहाँ उसे सब झूठ दिखाई देता है ,उसकी आत्मा उसे ग्वाही नहीं देती और वह रॉंग नंबर कहकर उनका विरोध करता है।  विभिन्न धार्मिक पाखंडों पर पी ,के, फिल्म प्रहार करती नज़र आती है। माना की भगवान का घर कहे जाने वाले  मंदिर, मस्जिद ,चर्च आदि गलत नहीं हैं।  परन्तु धर्म की आड़ में कई पाखण्ड होते हैंजिन्हे आम जन  समझ के भी नहीं समझना चाहते  आँखों में पट्टी बांधे रहते हैं।
माना की फिल्म की कहानी  बहुत नई  नहीं है , इससे पहले o.m.g. फिल्म भी कुछ इसी विषेय पर आधारित थी.
पी. के की कहानी  नई  पीढ़ी  के लिए नए विचारों  के साथ सादगी   से अपनी बात कहते हुए  धार्मिक पाखण्डों पर गहरा प्रहार है। फिल्म का प्रत्येक दृश्य मनोरंजन  से भरपूर है ,कोई भी दृश्य व्यर्थ  नहीं प्रतीत होता। वही यह फिल्म प्रेरणा देती है , की अगर भगवान को ढूंढ़ना है  तो ,अपनी आत्मा की आवाज़ सुनो  ,भगवान का घर कहे जाने वाले मंदिर  मस्जिद  चर्च आदि भी आवयशक हैं  सच्चा मन और निर्मल  हृदय  भी  आवयशक है। और क्या लिखूँ  पी. के फिल्म प्रेरणास्पद  भी है।  बाकी यह देखने वाले की  मानसिकता भी है की  वह किस दृश्य को किस  मानसिकता से देखता है। 

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...