''  मेहनती हाथ  ''
मेहनत मेरी पहचान ,मैं  मजदूर मजे से दूर। 
धनाभाव के कारण  थोड़ा मजबूर ,
मैले कुचैले वस्त्र मिट्टी से सने हाथ। 
तन पर हज़ारों घात कंकाल सा  तन 

मै मज़दूर कभी थकता नही , क्या कहूँ थक के चूर -चूर 
भी हो जाऊं पर कहता नहीं। 

क्योंकि में हूँ मजबूर  मज़दूर------
मेरे पसीने की बूँदों से सिंचित बड़ी -बड़ी आलीशान ईमारतें 
देख -देख सवयं पर नाज़ करता हुँ। 
और अपनी टूटी -फूटी झोपड़ियों मे खुश रहता हूँ। 

यूं तो रहते हैं सब हमसे दूर ,
पर बड़े -बड़े सेठ हम से काम करवाने को मज़बूर 
मजदूरों के बिना रह जाते हैं बड़े -बड़े आलिशान इमारतों के सपने अधूरे -----
में मजदूर सबके बड़े काम का ,फिर भी त्रिस्कृत 
नहीं मिलता अधिकार मुझे मेरे हक का ,
में मजदूर बड़े काम का । 


                                           ''   दर्पण ''

         शायद मेरा दर्पण मैला है ,यह समझ ,
मै उसको बार -बार साफ़ करता। 
दाग दर्पण में नहीं , मुझमे है, मुझे यकीन नहीं था। 
  
परन्तु एक मसीहा जो हमेशा मेरे साथ चलता है ,
मुझे अच्छे बुरे का विवेक कराता है ,मेरा मार्गदर्शक है ,
मुझे गुमराह होने से बचाता है। 
पर मै मनुष्य अपनी नादानियों से भटक जाता हूँ ,
स्वयं को समझदार समझ ठोकरें पर ठोकरें खाता  हूँ। 
दुनियाँ की रंगीनियों में स्वयं को इस क़दर रंग लेता हूँ ,
कि अभद्र हो जाता हूँ ,  फिर दर्पण देख पछताता हूँ। 
   
रोता हूँ ,और फिर लौटकर मसीहा के पास जाता हूँ '
उस मसीहा परम पिता के आगे शीश झुकता हूँ ,
उस पर भी अपनी नादानियों के इल्जाम मसीहा पर लगता हूँ। 
वह मसीहा हम सब को माफ़ करता है ,
वह मसीहा हम सब की आत्मा में बैठा परम पिता परमात्मा है।
देने के सिवा मुझे  कुछ आता नहीं !!!!!
                                                              एक दिन मैंने पुष्प से पुछा
                                                         आकाश की छत  मिटटी की गोद ,
                                                       क्या कारण  है जो काटों के  बीच भी,
                                                             बगीचो की शोभा बढ़ाते  हो ,
                                                   दुनिया को रंग-बिरंगा खूब सूरत बनाते हो
                                                                  मुस्कुराहटें  फैलाते हो।

                                                           उदास चेहरों पर हँसी  ले आते हो
                                                           इत्र बनकर हवा में समा  जाते हो
                                             अपने इस छोटे से जीवन में जीने का अर्थ बता जाते हो
                                                               ख़ुशी का सबब बन जाते हो।
                                                        

                                                          पुष्प ने कहा मेरा स्वाभाव ही ऐसा है ,
                                                       मुस्कुराने के सिवा मुझे कुछ आता नहीं,
                                                           देने के  सिवा मुझे कुछ भाता नहीं ,
                                                             माना   की जीवन संघर्ष है मेरा,
                                                                    छोटा सा जीवन है मेरा
                                                                     मुझे आपार हर्ष है, कि ,
                                                                नहीं जाता जीवन व्यर्थ है मेरा
                                                        ख़ुशी हो या गम , हर जगह उपयोग होता है,
                                                                                  मेरा  ।।। 

                  "क्योंकि वह दूर की सोचते थे"
                                          { -   कहते है न देर आये दुरुस्त आये  -३ }
      सीधा,सरल और सच्चा रास्ता थोडा लम्बा और कठिनाइयों भरा अवश्य हो सकता है,परन्तु इसके बाद जो सफलता मिलती है,वह चिर स्थाई होती है।यह विषय मेरा पसंदीदा विषय है।
       माना कि,आज के युग मैं सीधे -सरल लोगो को दुनियाँ मूर्ख समझती है,या यूं कहिए कि ऐसे लोग ज्यादा बुधिमान लोगो कि श्रेणी मैं नहीं आते।  परन्तु वास्तव मैं वे साधारण लोगो कि तुलना में अधिक बुद्धिमान  होते है क्योंकि वह दूर कि सोचते है।  भारतीय पौराणिक इतिहास मैं सच्ची घटनाओ  पर आधारित कई ऐसे महाकाव्य है,उन महाकाव्य में महान व्यक्तियो जीवन चरित्र किसी भी विकट परिस्थिति  मैं सत्य और धर्म कि  राह  को न छोड़ने वाले जीवन चरित्र अदभुद अतुलनीय अमिट छाप छोड़ते है।
       रामायण ,महाभारत उन्ही महाकाव्यों में से एक हैं। यह सिर्फ महाकाव्य ही नहीं परन्तु आदर्श जीवन कि अनमोल सम्पदाएँ हैं।
     
       मर्यादा पुरोषत्तम ''श्री राम '' प्राण जाए पर वचन न जाए
क्या रावण जैसे महादैत्य को मारने वाले श्री राम कभी कमजोर हो सकते हैं। राम जी चाहते तो चौदह वर्ष के लिए वनवास जाने के लिए इंकार कर सकते थे। परन्तु वो तो थे मर्यादा पुरोषत्तम श्री राम ' अनेको कठिनाइयों का सामना करने क बाद जीत तो सत्य और धर्म की ही हुई, अधर्म   रुपी रावण मारा गया।
दूसरा महा काव्य "महाभारत" जो आज के  युग में जन -जन  के  जीवन का यथार्थ बन चूकाहै। धर्म और अधर्म की जंग में "श्री कृष्णा " - अर्जुन के सारथी  बने  , द्रोपदी की लाज  बचाई , और अंत में जीत धर्म की हुई।
आज की पीढ़ी का मनोबल बोहोत कमज़ोर है जिसके कारण वह धर्म से भटक जाती  है।  उन्हें आव्यशकता है संयम  की , संयम  जो हमें श्री कृष्ण  , श्री राम , ध्रुव , प्रह्लाद आदि महान चरित्रों के जीवन चरित्रों को बार-बार चरित्रार्थ करने से मिलेगा।  जब धरती पर अधर्म बड़ जाता है धर्म की हानि होती है मनुष्य  में दिव्य  शक्तियों का ह्रास होता है तब धर्म रुपी दिव्य शक्तियाँ धरती पर  अवतरित होती  है।

       सत्य और धर्म की राहें चाहें कितनी भी बाधाओं से भरी हों परन्तु अंत में जीत सत्य और धर्म की ही होती है।  वह जीत चिरस्थाई  होती है।  

        आज का मानव वर्तमान में जीता है।  प्रतिस्पर्द्धा  की दौड़  में दौड़े जा रहा है।  कल क्या होगा किसने देखा।  दूर की सोचना तो आज मानव भूल ही गया है।  उसमे  दूर दर्शिता का रास होता जा रहा है।  
  किस्मत की  छड़ी 
 सुन्दर सभ्य स्वर्ग तुल्य समाज की चाह रही है. 
 परीक्षाफल की समीप घडी है,
वोटरों के हाथ नेताओं की किस्मत की छड़ी है ,
रजनीतिञ कुर्सियों की दिल की की धड़कन बड़ी है।
   
अड़चन बड़ी है,कौन होगा मेरा  सही उम्मीदवार ,
बेसब्री से हो रहा इंतजार 
कुर्सी की तो बस इतनी सी चाह है 
जो हो मेरा उम्मीदवार
वो हो ईमानदार,वफादार  

अपनी तो सभी करते है नैय्यापार,
पर नेता वही जो स्वार्थ  से ऊपर उठकर करे देश का करे  उद्धार। 
 भाईचारा,परस्पर प्रेम हो जिसका व्यवहार ,
सुन्दर सभ्य स्वर्ग तुल्य समाज का हमारा सपना हो साकार।  

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...